मैंने आँखें मूँद ली है हर उफनती आवाज़ों पे
मैंने खुदको छुपा लिया है हर शह के खौफ से
मैंने बदलने की भी कोशिश की है बेदस्तूर
ग़मों से इंसा को रिहा करने की
बारिश से भयंकर तूफाँ को जुदा करने की
मैंने ठानी हैं हर वो शर्त.. मग़र शर्मिंदा हूँ
देखता हूँ जब भी आँखें हल्की सी खोलकर
एक टींस उठती हैं उबलती लावा बनकर
सब कुछ राख के ढेर पर बना मिलता हैं
आँधी जाने क्यूं वो बेखौफ चलके आती नहीं
मैं देखता हूँ.. अब भी कुछ गुमसुम नहीं हैं
एक लूट सी मची हैं.. एक शोर उठता है रोज़
मैंने जिंदगी को एक गिरफ्त में उड़ेल दिया है
अब कुछ नहीं देखा जाता तो मौन हूँ मैं
मैंने आँखें मूँद ली है हर उफनती आवाज़ों पे
मैंने खुदको छुपा लिया है हर शह के खौफ से।
नितेश वर्मा
मैंने खुदको छुपा लिया है हर शह के खौफ से
मैंने बदलने की भी कोशिश की है बेदस्तूर
ग़मों से इंसा को रिहा करने की
बारिश से भयंकर तूफाँ को जुदा करने की
मैंने ठानी हैं हर वो शर्त.. मग़र शर्मिंदा हूँ
देखता हूँ जब भी आँखें हल्की सी खोलकर
एक टींस उठती हैं उबलती लावा बनकर
सब कुछ राख के ढेर पर बना मिलता हैं
आँधी जाने क्यूं वो बेखौफ चलके आती नहीं
मैं देखता हूँ.. अब भी कुछ गुमसुम नहीं हैं
एक लूट सी मची हैं.. एक शोर उठता है रोज़
मैंने जिंदगी को एक गिरफ्त में उड़ेल दिया है
अब कुछ नहीं देखा जाता तो मौन हूँ मैं
मैंने आँखें मूँद ली है हर उफनती आवाज़ों पे
मैंने खुदको छुपा लिया है हर शह के खौफ से।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment