Thursday, 8 October 2015

होती हैं क्या मुहब्बत मैं नहीं जानता

होती हैं क्या मुहब्बत मैं नहीं जानता
सच है, हूँ मैं सहमत मैं नहीं जानता।

वो आवाज़ मुझे सोने ही नहीं देती हैं
कैसी है तेरी तौहमत मैं नहीं जानता।

तुम प्यास से हारे तो थक के सो गये
कैसे गुजारी वो वक्त मैं नहीं जानता।

सारे शख्स मेरे अपनों की भीड़ में हैं
मुझसा था जो दरख्त मैं नहीं जानता।

फिर से उसी बाज़ार से गुजरें है वर्मा
शक्लें वो मौकापरस्त मैं नहीं जानता।

नितेश वर्मा और मैं नहीं जानता।

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