तुमको ऐसे क्यूं लगता हैं सब बदल जायेगा
चराग़ तेरा आँधी में भी आकर जल जायेगा।
होंठों पर भींगी-भींगी सी प्यास ठहरती रही
मौसम जाने होके कौन सा मुकम्मल जायेगा।
इतने इत्मीनान से बैठें हैं जिंदगी की छाँव में
मौत भी आके करीब दो पल सँभल जायेगा।
दबे पाँव घर में घुस बैठें हैं मुसाफिर शहरी
इंकलाब फिर से मुझमें यूंही निकल जायेगा।
वो चलते हैं मसलेहत को खुदमें लेकर वर्मा
मुहब्बत में आकर दिल फिर मचल जायेगा।
नितेश वर्मा और जायेगा।
चराग़ तेरा आँधी में भी आकर जल जायेगा।
होंठों पर भींगी-भींगी सी प्यास ठहरती रही
मौसम जाने होके कौन सा मुकम्मल जायेगा।
इतने इत्मीनान से बैठें हैं जिंदगी की छाँव में
मौत भी आके करीब दो पल सँभल जायेगा।
दबे पाँव घर में घुस बैठें हैं मुसाफिर शहरी
इंकलाब फिर से मुझमें यूंही निकल जायेगा।
वो चलते हैं मसलेहत को खुदमें लेकर वर्मा
मुहब्बत में आकर दिल फिर मचल जायेगा।
नितेश वर्मा और जायेगा।
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