Thursday, 29 October 2015

पता नहीं क्यूं

शहर में चुनावी चहल-पहल
आक्रोशित माहौल
गलियारों में गूंजती शिव आरती
शाम को मुतमईन करती अज़ान
मेरा संग तुम्हारे नौका विहार
सब कुछ एक साथ ही गुजरता है
पर
मैं आज तक हैरान हूँ..
बस इस बात को लेकर
क्यूं तुम
उस चुनावी माहौल में आकर
ये कौम का बहाना बनाकर
मुझसे अलग हो गयीं
और फिर मुझसे इतनी दूर.. की
मैं फिर तुम्हें
वापस बुला ना सका
जाने क्यूं.. पता नहीं क्यूं.. या यूं ही
पता नहीं क्यूं.. मगर नहीं बुला सका
और ना ही अब तक भूला पाया हूँ
पता नहीं क्यूं।

नितेश वर्मा और पता नहीं क्यूं।

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