मैं आज भी वहीं ठहरा हुआ वक्त हूँ जो कि खुद से उदास हैं और थोड़ा तन्हा भी.. पर तुम.. जब भी पीछे मुड़के मुझको देखती हो तुम्हारी शिकायत हर बार यही होती हैं कि - तुम तो अब भी बिलकुल नहीं बदलें।
मगर..
तुम जितना छोड़ गयी थीं मुझे मुझमें मैंने.. बस उसे सँभाले रखा हैं.. पर जाने क्यूं तुम्हारी शिकायतें ये मुझे कभी समझती नहीं।
मैं आज भी वहीं ठहरा हुआ वक्त हूँ.. और तुम हर बार की बदलती हुई कोई शीत, बस मुझमें आकर सिहरन सी छोड़ जाती हो।
नितेश वर्मा और तुम।
मगर..
तुम जितना छोड़ गयी थीं मुझे मुझमें मैंने.. बस उसे सँभाले रखा हैं.. पर जाने क्यूं तुम्हारी शिकायतें ये मुझे कभी समझती नहीं।
मैं आज भी वहीं ठहरा हुआ वक्त हूँ.. और तुम हर बार की बदलती हुई कोई शीत, बस मुझमें आकर सिहरन सी छोड़ जाती हो।
नितेश वर्मा और तुम।
No comments:
Post a Comment