वो चली जाने के लिये उठी थी.. मगर किसे पता था वो दुबारा लौटकर नहीं आयेगी।
अब जो हर जगह खुद को तन्हा महसूस करता हूँ.. टूट जाता हूँ.. खुद में ये सोचकर.. काश!.. काश मैं ही समझ जाता उसे।
शायद वो रूक जाती.. मेरे पास बैठ जाती.. अपनी जुल्फों को सुलझाकर.. मेरे कांधे पर अपना सर रखकर दो पल सुकूँ के दे जाती.. काश! उस वक़्त मेरी हाथों की पकड़ उसकी नाजुक उंगलियों को रिहा ना करती.. काश मैं उसे थाम लेता।
दरअसल, यही तो मुहब्बत होती हैं एक-दूसरे से बिना पूछे उसके दिल की सुन लेना.. उसके लिये बिना शर्त के वो सब कुछ कर जाना जिसे उसकी उम्मीद बंधी हुई होती हैं।
मगर अब सब कुछ धुँधला सा दिखता हैं मेरे आँसू भी मगरमच्छ के लगते हैं, इस बात की अब कोई वजह नहीं और ना ही इस प्राश्चित की जरूरत.. क्यूंकि वो तो चली जाने के लिये उठी थी.. फिर कभी दुबारा न आने के लिये।
नितेश वर्मा और वो।
अब जो हर जगह खुद को तन्हा महसूस करता हूँ.. टूट जाता हूँ.. खुद में ये सोचकर.. काश!.. काश मैं ही समझ जाता उसे।
शायद वो रूक जाती.. मेरे पास बैठ जाती.. अपनी जुल्फों को सुलझाकर.. मेरे कांधे पर अपना सर रखकर दो पल सुकूँ के दे जाती.. काश! उस वक़्त मेरी हाथों की पकड़ उसकी नाजुक उंगलियों को रिहा ना करती.. काश मैं उसे थाम लेता।
दरअसल, यही तो मुहब्बत होती हैं एक-दूसरे से बिना पूछे उसके दिल की सुन लेना.. उसके लिये बिना शर्त के वो सब कुछ कर जाना जिसे उसकी उम्मीद बंधी हुई होती हैं।
मगर अब सब कुछ धुँधला सा दिखता हैं मेरे आँसू भी मगरमच्छ के लगते हैं, इस बात की अब कोई वजह नहीं और ना ही इस प्राश्चित की जरूरत.. क्यूंकि वो तो चली जाने के लिये उठी थी.. फिर कभी दुबारा न आने के लिये।
नितेश वर्मा और वो।
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