Saturday, 17 October 2015

कोई नई बात

एक लघु कथा

तुम इतना क्यूं सोचते हो, मुझे तुम्हारे लिये कुछ भी कर के एक अजीब खुशी मिलती हैं बिलकुल एक रूहानी सुकून सा लगता हैं.. मैं कुछ भी तुम्हारे लिये कर सकूँ वो मेरी खुशनसीबी हैं।
तुम खामाखाह ये सब सोचते रहते हो, तुम्हें तो बस मेरे बारे में सोचने का हक है और कुछ नहीं, समझे तुम।
तुम कितनी अच्छी हो।
जानती हूँ - कोई नई बात बताओ?
आई लव यू।
आई लव यू टू।
जानता हूँ, कोई नई बात करो।

नितेश वर्मा


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