Saturday, 17 October 2015

यार - 1

यार!
खुश तो सब रहना चाहते हैं
लेकिन सबकी किस्मत में
ये खुशियाँ कहाँ होती हैं। - वो बोली
तुम किस्मत में यकीन रखती हो? - मैंने पूछा
नहीं, मुझे नहीं पता।
लेकिन कभी-कभी ऐसा क्यूं होता हैं
की
किसी की जिंदगी से मुश्किलात
खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं - उसने पूछा
तुम्हें ऐसा क्यूं लगता हैं कि
तुम्हारी जिन्दगी भी
एक आजमाइश से होके गुजर रही हैं? - मैंने पूछा
उसने अपनी जुल्फों को सुलझाकर
मेरी ओर देख कर मुस्कुरा दिया
बिन कुछ बोलें.. यूं खामोशी से।
तुम हँसती रहा करो
तुम मुस्कुराती हुये बहोत अच्छी लगती हो - मैंने कहा
कैसे रहा करू खुश.. यूं ही बेजान तन्हा होके - उसने पूछा
मैंने हाथ बढाकर कहा संग चलोगी मेरे
जिन्दगी की दो मोड़ ही सही
मगर मुस्कुराते हुए
क्यूंकि
तुम मुस्कुराती हुये बहोत अच्छी लगती हो - मैंने कहा
इस बार मुस्कुरा कर उसने हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया बिन कुछ बोलें
अपनी आँखों को खुद से ही छिपाकर।

नितेश वर्मा और यार।

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