Wednesday, 2 September 2015

याद बचपन की आती है

याद बचपन की आती है
अब बड़े हो गये
तो कुछ सताती है
बिन आँसू के रूलाती है
याद बचपन की आती है।

कभी उटपटांग की बातें
तो कभी भूतों वाली रातें
कभी चोर-पुलिस
तो कभी रस्सा-खींच
हारते हर बार हम सब
खिलखिलाकर फिर भी
घर को साथ चले आते
दिन वही याद आती है
शामें वहीं सोहाती है
याद बचपन की आती है।

गाँवों की गंगा में
जमुना हर बार मिलती थी
आसमानों की उड़ान
सबके आँखों में मिलती थी
डूबती थी ख्वाबों में आँखें
कटती कभी जो पतंगें
लूटने की मार होती थी
कोई गिर जाता रस्ते में
कोई घुटने छिल के
पंतगे संग धागे समेट लेता
क्यूं अब ये दिखता नहीं
बच्चे घर में बड़े हो रहे
देखने को भी अब वो सब
आँखें तरस जाती है
याद बचपन की आती है।

नितेश वर्मा

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