Tuesday, 22 September 2015

कुछ बना लेने की कोशिश में

कुछ बना लेने की कोशिश में.. कुछ कर लेने की जिद में.. अक्सर इंसान बेहिस हो जाता है, हालांकि कई लोग मेरे इस बात से मुतासिर नहीं होंगे।
क्यूंकि कई लोग मेरी तरह ही इसी दौर से गुजर रहे होंगे। राहुल अपने ख्यालों में उलझे-उलझे ये सब कुछ सोच ही रहा था की अचानक उसके मोबाइल पर एक नम्बर फ्लैश हुआ। माँ का फोन था, राहुल वो काल पिक अप नहीं करना चाहता था। माँ का वो रोज़ का एक ही सवाल - बेटा आज कोई बात बनी, कहीं कोई छोटी नौकरी भी मिल जाए तो कर लो, कब तलक तुम अपने सपनों के पीछे भागोगे। तुम्हारी फिक्र हर वक़्त सताती है मुझे और तुम्हारे बाबूजी को भी।
राहुल ना चाहते हुए भी उस काल को पिक करता है - हाँ मम्मा।
अरे, तू इतनी देर से फोन क्यूं उठाता है, पता है तुझे! तेरी इस बात से मेरा जी कितना घबराता हैं, अजनबी शहर है ना वो बेटा, ख्याल रखा करो अपना।
हाँ मम्मा।
क्या हाँ मम्मा? कुछ बोल भी तो आगे।
मम्मा आज कुछ मूड अच्छा नहीं, फिर बात करते है।
बेटा, क्या हुआ? दवा ले लेना।
हाँ माँ, ठीक है ओके बाय, काल यू लेटर।
राहुल का ऐसे बेमन से फोन काट देने के बात से शायद माँ को इस बात की समझ हो गई थी कि आज भी राहुल को अपने अधूरे सपने के साथ तन्हा ही सोना हैं।
दरअसल राहुल किसी अजनबी राज्य के एक छोटे से कस्बे से है, जो पिछले सात महीनों से इस सपनों की शहर मुम्बई में एक गीतकार बनने के सपने से आया है, लेकिन उसकी हर रोज़ की कोशिश और दुनियादारों के जुमले राहुल अपनी इस जिन्दगी से अब तंग आ चुका था। उसे भी अब अपनी माँ की बातों में सच्चाई झलकती नज़र आने लगी थी। लेकिन अब इन ख्वाबों का क्या, क्या जिम्मेदारियों के अधीन होकर इंसान मजबूर हो जाता है। राहुल जब फिर से अपने ख्यालों में खोनें की कोशिश करता है पीछे से पलक आ जाती है। पलक भी गीतकार बनने की सपने को रखती है, हालांकि उसके अच्छे आवाज़ के कारण उसे ऐड फिल्मों में एक-दो बार गाने के चान्सेज भी मिले हैं। लेकिन पलक एक अच्छी गीतकार बनना चाहती है बिलकुल राहुल की तरह। राहुल की कविताओं, शे'रों, ग़ज़लों, नज़मों और भी ना जाने किन-किन चीजों से इंप्रेस होकर पलक ने उसे अपना हमसफ़र बनाने का सोच लिया था। मगर इन सबके विपरीत था राहुल का स्वभाव, वो एक आशावादी और घर-परिवार-सामाज को एक-साथ लेकर चलने वाला इंसान था। वो ऐसी हालत में किसी भी कमिटमेंट के लिये थोड़ा भी तैयार नहीं था, वो अपने भविष्य के लिये परेशान था तो पलक उसके इतने फिक्रमंद होने पर। इस जिन्दगी की भी अजीब सी दस्तूर है, वहीं दिल हारता हैं जहाँ कोई उम्मीद नहीं होती, जहाँ कोई जल्दी कभी बात नहीं बनती।
राहुल पलक को देखकर मुस्कुराता है फिर खामोश हो जाता है, पलक को ऐसी झूठी मुस्कानों की अब आदत हो गयी हैं। पलक फिर चुपचाप एक खामोशी ओढे राहुल के करीब जाके बैठ जाती है। घंटों खामोशियों में डूबे रहते हैं ये दो दिल, दोनों बस खामोश इसी उम्मीद में बैठें रहते है जैसे समुन्दर की लहरें कहीं से कोई ऐसी लहर लेके आऐगी जो एक शाम उन दोनों के ख्वाबों को पूरा कर देगी। बेबाक शाम की बहती हवाएँ जब पलक की जुल्फों से राहुल को परेशां करती हैं, पलक अपना इक हाथ उसके हाथों में रख देती है। राहुल मुस्कुरा देता है फिर माँ की फिक्र का ख्याल करकें राहुल माँ को फोन मिलाने लगता हैं।

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment