मुझे नहीं लगता कुछ होने जाने वाला है
पापा जब भी ये कहते
माँ उन्हें एक ठंडे ग्लास का पानी
मुस्कुरा कर पकड़ा देती
मैं आँगन के बीच में बिछी चटाई पर
चुपचाप सर झुकाएँ अपनी हिन्दी के
किताब की उसी कविता को दुहरा देता
जो मुझे हर दफा डाँट सुनने के बाद
गुनगुनाना होता था
जो मुझे याद होता था बिलकुल लयबद्ध
धीरे-धीरे मैं कविता में रम जाता
पापा रेडियो आन कर लेते
माँ शाम की पकौडियाँ तलने लगती
आसमान में तारें बिछने लगते सुदूर
सब खूबसूरत लगने लगता
फिर हौले-हौले हवा भी चलने लगती
जब कभी तुम आ जाती।
नितेश वर्मा
पापा जब भी ये कहते
माँ उन्हें एक ठंडे ग्लास का पानी
मुस्कुरा कर पकड़ा देती
मैं आँगन के बीच में बिछी चटाई पर
चुपचाप सर झुकाएँ अपनी हिन्दी के
किताब की उसी कविता को दुहरा देता
जो मुझे हर दफा डाँट सुनने के बाद
गुनगुनाना होता था
जो मुझे याद होता था बिलकुल लयबद्ध
धीरे-धीरे मैं कविता में रम जाता
पापा रेडियो आन कर लेते
माँ शाम की पकौडियाँ तलने लगती
आसमान में तारें बिछने लगते सुदूर
सब खूबसूरत लगने लगता
फिर हौले-हौले हवा भी चलने लगती
जब कभी तुम आ जाती।
नितेश वर्मा
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