Saturday, 19 September 2015

तेरे शहर के मआरिफ़ अंजान हो गये

तेरे शहर के मआरिफ़ अंजान हो गये
कैसे कहें बगैर तेरे हम बेजान हो गये।

हमको दो कदम चलने की आदत थी
वो जिंदगी की बात कर रेहान हो गये।

मेरे हाथों से फिसलती रही तस्वीर वो
वो इक झलक देके मेहरबान हो गये।

इतना सा सिलसिला जारी रहे यूं वर्मा
मैं पढता रहा और वो आसमान हो गये।

नितेश वर्मा और हो गये।

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