तेरे शहर के मआरिफ़ अंजान हो गये
कैसे कहें बगैर तेरे हम बेजान हो गये।
हमको दो कदम चलने की आदत थी
वो जिंदगी की बात कर रेहान हो गये।
मेरे हाथों से फिसलती रही तस्वीर वो
वो इक झलक देके मेहरबान हो गये।
इतना सा सिलसिला जारी रहे यूं वर्मा
मैं पढता रहा और वो आसमान हो गये।
नितेश वर्मा और हो गये।
कैसे कहें बगैर तेरे हम बेजान हो गये।
हमको दो कदम चलने की आदत थी
वो जिंदगी की बात कर रेहान हो गये।
मेरे हाथों से फिसलती रही तस्वीर वो
वो इक झलक देके मेहरबान हो गये।
इतना सा सिलसिला जारी रहे यूं वर्मा
मैं पढता रहा और वो आसमान हो गये।
नितेश वर्मा और हो गये।
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