कहीं गुजरें कोई एहसास, कभी ठहरूं मैं तुझपे
जां चले यूंही होके आशिक आवारा रहूँ मैं तुझपे
मैं कैसे तरतीब से लिखूँ तू समुन्दर प्यास की है
तेरे सीने में होके यूं कैद पागल सा बहू मैं तुझपे
वो तो खुशनसीब पल थे जो संग गुजारें थे हमने
तुम अब याद आती हो ये दर्द सा सहूँ मैं तुझपे।
तुम याद आओगी बेशक चले जाने के बाद वर्मा
हर रोज़ फिर तेरी याद में शायरी कहूँ मैं तुझपे।
नितेश वर्मा और शायरी।
जां चले यूंही होके आशिक आवारा रहूँ मैं तुझपे
मैं कैसे तरतीब से लिखूँ तू समुन्दर प्यास की है
तेरे सीने में होके यूं कैद पागल सा बहू मैं तुझपे
वो तो खुशनसीब पल थे जो संग गुजारें थे हमने
तुम अब याद आती हो ये दर्द सा सहूँ मैं तुझपे।
तुम याद आओगी बेशक चले जाने के बाद वर्मा
हर रोज़ फिर तेरी याद में शायरी कहूँ मैं तुझपे।
नितेश वर्मा और शायरी।
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