मुझको ये हुनर है के मैं बिखर जाता हूँ
टूटने के बाद ही उसको नज़र आता हूँ।
रातें हर पहर में वो उठ के बैठ जाती है
उसको हवाओं में मैं ही समझ आता हूँ।
बंद दरवाजों पे चिठ्ठियाँ बेतरतीब हो गई
दीवाने वो शहर हर बार मैं लिखवाता हूँ।
मुझको भी वो भूलकर दूर रहती है अब
मैं खुद अब जहाँ से आँखें चुरा जाता हूँ।
वो दरीचों के दरम्यां मुझे ढूंढती है वर्मा
मैं उसके सीने में फिर से तड़प जाता हूँ।
नितेश वर्मा और हुनर।
टूटने के बाद ही उसको नज़र आता हूँ।
रातें हर पहर में वो उठ के बैठ जाती है
उसको हवाओं में मैं ही समझ आता हूँ।
बंद दरवाजों पे चिठ्ठियाँ बेतरतीब हो गई
दीवाने वो शहर हर बार मैं लिखवाता हूँ।
मुझको भी वो भूलकर दूर रहती है अब
मैं खुद अब जहाँ से आँखें चुरा जाता हूँ।
वो दरीचों के दरम्यां मुझे ढूंढती है वर्मा
मैं उसके सीने में फिर से तड़प जाता हूँ।
नितेश वर्मा और हुनर।
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