मैं बेचैन हूँ इक झील सा
बेताबियाँ सीने के अंदर है
हर शाम कुछ लोग आते है
खामोशियों से बोझिल होके
अब उगता सा गया हूँ
मैं इन शरीफ लोगों से।
नितेश वर्मा और शरीफ लोग।
बेताबियाँ सीने के अंदर है
हर शाम कुछ लोग आते है
खामोशियों से बोझिल होके
अब उगता सा गया हूँ
मैं इन शरीफ लोगों से।
नितेश वर्मा और शरीफ लोग।
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