एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
सबके नज़र में था जो नासूर
उस बेहाल के उस हाल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
पल-पल टूटता खुद में रहा था
खामोशियों में भी खामोश होकर
सुनता था हर शह में एक सहर
जिन्दा-दिली में मशहूर होकर
बात बढ कर टूटी थी उस दिन
आये थे जब अपने खंज़र लेकर
आँखों में ऐसे बंजर थे
पानी के जगह लहू-मंजर थे
कुछ और ना पूछो उस बदहाल की
मनके लिये उस जंजाल से मिला
कैसे उस दिल के बवाल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
हर गली, हर नुक्कड़ पे आवाज़ थी
मेरी बातें छींनी उसने
यही उस रोज़ की भरी व्यापार थी
मेरे दिल के कोने का कमरा
जाने कबसे चीत्कारें भरता रहा
मेरे सपनों में यही रातें उगती रही
बेचैन मन की आहें टूटती रही
जब ठानी थी कुछ करने को
तब मैं सहकर सब चलता रहा
सफ़र के सब मैं सवाल से मिला
आँखों के उस हर मज़ाल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला।
नितेश वर्मा और एक रोज़ ।
सबके नज़र में था जो नासूर
उस बेहाल के उस हाल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
पल-पल टूटता खुद में रहा था
खामोशियों में भी खामोश होकर
सुनता था हर शह में एक सहर
जिन्दा-दिली में मशहूर होकर
बात बढ कर टूटी थी उस दिन
आये थे जब अपने खंज़र लेकर
आँखों में ऐसे बंजर थे
पानी के जगह लहू-मंजर थे
कुछ और ना पूछो उस बदहाल की
मनके लिये उस जंजाल से मिला
कैसे उस दिल के बवाल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
हर गली, हर नुक्कड़ पे आवाज़ थी
मेरी बातें छींनी उसने
यही उस रोज़ की भरी व्यापार थी
मेरे दिल के कोने का कमरा
जाने कबसे चीत्कारें भरता रहा
मेरे सपनों में यही रातें उगती रही
बेचैन मन की आहें टूटती रही
जब ठानी थी कुछ करने को
तब मैं सहकर सब चलता रहा
सफ़र के सब मैं सवाल से मिला
आँखों के उस हर मज़ाल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला
एक रोज़ मैं अपने ख्याल से मिला।
नितेश वर्मा और एक रोज़ ।
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