Thursday, 17 September 2015

घर होगा उसका तो शहर में दाखिला होगा

बस वहीं तक मेरे सफ़र का काफिला होगा
घर होगा उसका तो शहर में दाखिला होगा।

वो चाहे तो बदल सकता है यूं नसीब अपना
दस्तूर यही की सख्ती भरा ये राहिला होगा।

तबाह कर दिया मैंने जो मिल्कियत था मेरा
रोकर कह रही है माँ उसका हामिला होगा।

यही दुहराता रहा ग़र हर बार मैं जिन्दगी तो
अजीब होगी परेशानी और तू नाजिला होगा।

नितेश वर्मा

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