बस वहीं तक मेरे सफ़र का काफिला होगा
घर होगा उसका तो शहर में दाखिला होगा।
वो चाहे तो बदल सकता है यूं नसीब अपना
दस्तूर यही की सख्ती भरा ये राहिला होगा।
तबाह कर दिया मैंने जो मिल्कियत था मेरा
रोकर कह रही है माँ उसका हामिला होगा।
यही दुहराता रहा ग़र हर बार मैं जिन्दगी तो
अजीब होगी परेशानी और तू नाजिला होगा।
नितेश वर्मा
घर होगा उसका तो शहर में दाखिला होगा।
वो चाहे तो बदल सकता है यूं नसीब अपना
दस्तूर यही की सख्ती भरा ये राहिला होगा।
तबाह कर दिया मैंने जो मिल्कियत था मेरा
रोकर कह रही है माँ उसका हामिला होगा।
यही दुहराता रहा ग़र हर बार मैं जिन्दगी तो
अजीब होगी परेशानी और तू नाजिला होगा।
नितेश वर्मा
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