अगर धूप से छाँव ड़रने लगे
पश्चिमी हवाएँ भी सहम कर बहने लगे
शहर से दूर बसी गाँव बिखरने लगे
अपनों की जिक्र पे जुबां मुकरने लगे
फिर तुमको सोचना होगा
किताबें जब झूठी दास्ताँ बताने लगे
मजहब जब कोई कौम बुरा बताने लगे
कोई तस्वीर जब ड़राने लगे
दरख्त भी सायों में गम गुनगुनाने लगे
फिर तुमको सोचना होगा
बादल आए और बरसें भी ना
संदेश भी जब शहर को सोहाये ना
बात अंग्रेजों को हिन्दी की भाये ना
दिल हो अखबार पर लिख पाये ना
फिर तुमको सोचना होगा
परिंदों की उड़ान जब जमीं ढूंढें
घरों की मकान जब वजह ढूंढें
लौट कर बच्चे जब माँ ना पुकारें
दर्द भी जाने को जब रिश्वत माँगें
फिर तुमको सोचना होगा
फिर तुमको जगना होगा हर गहरी नींद से
चलना होगा निर्भय.. अपने हक को
छीनना होगा.. मुक्कदर से लड़ना होगा
ऐसा होगा तो सोच लो.. चुप नहीं रहना होगा
फिर तुमको सोचना होगा
फिर तुमको सोचना होगा।
नितेश वर्मा और फिर तुमको सोचना होगा ।
पश्चिमी हवाएँ भी सहम कर बहने लगे
शहर से दूर बसी गाँव बिखरने लगे
अपनों की जिक्र पे जुबां मुकरने लगे
फिर तुमको सोचना होगा
किताबें जब झूठी दास्ताँ बताने लगे
मजहब जब कोई कौम बुरा बताने लगे
कोई तस्वीर जब ड़राने लगे
दरख्त भी सायों में गम गुनगुनाने लगे
फिर तुमको सोचना होगा
बादल आए और बरसें भी ना
संदेश भी जब शहर को सोहाये ना
बात अंग्रेजों को हिन्दी की भाये ना
दिल हो अखबार पर लिख पाये ना
फिर तुमको सोचना होगा
परिंदों की उड़ान जब जमीं ढूंढें
घरों की मकान जब वजह ढूंढें
लौट कर बच्चे जब माँ ना पुकारें
दर्द भी जाने को जब रिश्वत माँगें
फिर तुमको सोचना होगा
फिर तुमको जगना होगा हर गहरी नींद से
चलना होगा निर्भय.. अपने हक को
छीनना होगा.. मुक्कदर से लड़ना होगा
ऐसा होगा तो सोच लो.. चुप नहीं रहना होगा
फिर तुमको सोचना होगा
फिर तुमको सोचना होगा।
नितेश वर्मा और फिर तुमको सोचना होगा ।
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