बातों के आड़ में लतियाते रहिये
ऐसी है बात तो बतियाते रहिये।
इल्जाम सारे शहर के मुझसे हैं
हँसीं लब आप गुनगुनाते रहिये।
कितनी परेशान हैं आँखें तुम्हारी
नजरें यूं मुझसे भी मिलाते रहिये।
मैं तंग हूँ तुम सुल्झी किताब हो
इस दीवानें को भी पढाते रहिये।
जिंदगी भर गम ही मिले हैं वर्मा
खूनी सर हर बार कटाते रहिये।
नितेश वर्मा
ऐसी है बात तो बतियाते रहिये।
इल्जाम सारे शहर के मुझसे हैं
हँसीं लब आप गुनगुनाते रहिये।
कितनी परेशान हैं आँखें तुम्हारी
नजरें यूं मुझसे भी मिलाते रहिये।
मैं तंग हूँ तुम सुल्झी किताब हो
इस दीवानें को भी पढाते रहिये।
जिंदगी भर गम ही मिले हैं वर्मा
खूनी सर हर बार कटाते रहिये।
नितेश वर्मा
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