Friday, 25 September 2015

यही अच्छा रहेगा

काल्पनिक चरित्र सचित्र मस्तिष्क में पड़े हैं
स्वप्नविहीन हैं और कष्टदायी भी
परंतु परम्परागत मनोरंजित करती हैं
अवशेषों से ह्रदय लगाकर उब गया हूँ
यादें कुंठित करती हैं
तुम चली जाओ.. यही अच्छा रहेगा
मैं ठहर जाऊँ.. यही अच्छा रहेगा।

नितेश वर्मा और यही अच्छा रहेगा।


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