काल्पनिक चरित्र सचित्र मस्तिष्क में पड़े हैं
स्वप्नविहीन हैं और कष्टदायी भी
परंतु परम्परागत मनोरंजित करती हैं
अवशेषों से ह्रदय लगाकर उब गया हूँ
यादें कुंठित करती हैं
तुम चली जाओ.. यही अच्छा रहेगा
मैं ठहर जाऊँ.. यही अच्छा रहेगा।
नितेश वर्मा और यही अच्छा रहेगा।
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