Wednesday, 2 September 2015

बीते दिन याद आये अब

बीते दिन याद आये अब
पल वो नज़र ना आये अब
आँखों की मेरी बूंदों में
ख्वाबों सा तू आये अब
बीते दिन याद आये अब।

टूटें-बिखरे शीशे है
यादों के ऐसे टींसे है
छुऊँ कभी जो मैं डर के
आँखों की दर्द
जुबां की आह
खून से रंगे अब शीशे है
ऐसी रातें आये अब
दिल ही दिल घबराये अब
सफ़र सुहाना ठहरा अब
अँधेरों में मुझको रहना अब
बीते दिन याद आये अब
पल वो नज़र ना आये अब।

दिन-रात कभी जीतें थे
यादों में ही अब गुजरते है
अपने ख्वाबों को
अब ख्वाबों में ही रखते है
जब उसे बुरा लगा
वो मुझको छोड़ चल दिया
मिट्टी का मेरा दिल
उसको तोड़ वो चल दिया
कौन किसी को जाने अब
दिल रोता, जुबां फरेबी अब
टूटे है हर साये अब
बीते दिन याद आये अब
पल वो नज़र ना आये अब।

नितेश वर्मा

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