के अब आके उसे गुरुर नज़र आता हैं
ये जान भी उसे मगरूर नज़र आता हैं।
वो तन्हाइयों में भी जो पागल चलता हैं
आँखों में उसे भी सुरूर नज़र आता हैं।
बदलता है हरेक दफा वो चेहरा अपना
गौर से जो देखा मजबूर नज़र आता हैं।
कुछ गफलत हैं मेरे परिवार में यूं वर्मा
शख्स करीबी बहोत दूर नज़र आता हैं।
नितेश वर्मा और नज़र आता हैं।
ये जान भी उसे मगरूर नज़र आता हैं।
वो तन्हाइयों में भी जो पागल चलता हैं
आँखों में उसे भी सुरूर नज़र आता हैं।
बदलता है हरेक दफा वो चेहरा अपना
गौर से जो देखा मजबूर नज़र आता हैं।
कुछ गफलत हैं मेरे परिवार में यूं वर्मा
शख्स करीबी बहोत दूर नज़र आता हैं।
नितेश वर्मा और नज़र आता हैं।
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