Thursday, 24 September 2015

कोई और वजह है घर से निकलने की

कोई और वजह है घर से निकलने की
मत बोल यूं हर बार मुझसे बदलने की

मैं सँभल जाता हूँ जब भी गिर जाता हूँ
ना सीखा तू मुझको राह पर चलने की

मैंने देखा है आँखों में मुहब्बत उसकी
वो भूल जाती है करकें बात मिलने की

यूं तंग हैं जो इशारों में शायर कहते हैं
आ गए हैं बताने वजह उमर ढलने की

इतनी सी बोझिल हैं जिन्दगी मेरी वर्मा
बेखबर लोग कहते है मुझे संभलने की

नितेश वर्मा



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