उन चार दोस्तों की
बेफिजूली से दूर
मैं कुछ लिखने को बैठता
बार-बार की उनकी
वहीं बकवासें
मैं परेशान हो जाता
उनकी निबंध सी बातें
खत्म होने का
कोई सवाल ही नहीं होता
मैं खामोशियों को ढूंढता
और वो हर बहस में
मुझे शामिल कर लेते
मैं उगता के बाहर आ जाता
अब इन सबसे
कहीं दूर हूँ, खामोश हूँ
खुश हूँ मगर कुछ तो है
आज भी
उतना ही परेशान हूँ।
नितेश वर्मा
बेफिजूली से दूर
मैं कुछ लिखने को बैठता
बार-बार की उनकी
वहीं बकवासें
मैं परेशान हो जाता
उनकी निबंध सी बातें
खत्म होने का
कोई सवाल ही नहीं होता
मैं खामोशियों को ढूंढता
और वो हर बहस में
मुझे शामिल कर लेते
मैं उगता के बाहर आ जाता
अब इन सबसे
कहीं दूर हूँ, खामोश हूँ
खुश हूँ मगर कुछ तो है
आज भी
उतना ही परेशान हूँ।
नितेश वर्मा
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