दिन भर से बोर होकर
जब शाम को मैं
चाय लेकर छत पे आता हूँ
सामने एक तस्वीर सा चेहरा
जो मेरे इंतजार में पागल
और
मैं बस देख के मुस्कुरा के
उससे नजरें फेर लेता हूँ
चाय की चुस्कियों के संग
आसमां में
घर लौटती चिड़ियों को
देखता हूँ
फिर पडोस के छत पर
काका की रेडियो में बजती
ले के पहला-पहला प्यार
वाला धुन
मजरूह साहब याद आ जाते है
चाय माँ की हाथों की
लगने लगती है
थकान उतर जाती है
बोझिल सूरज ढल जाता है
मैं पीछे मुड़ता हूँ
तस्वीर एक शक्ल का
रूप ले लेती है
मैं देख उसे मुस्कुराता हूँ
फिर उसे उसके हाल पे छोड़
अपने कमरे में लौट आता हूँ।
नितेश वर्मा
जब शाम को मैं
चाय लेकर छत पे आता हूँ
सामने एक तस्वीर सा चेहरा
जो मेरे इंतजार में पागल
और
मैं बस देख के मुस्कुरा के
उससे नजरें फेर लेता हूँ
चाय की चुस्कियों के संग
आसमां में
घर लौटती चिड़ियों को
देखता हूँ
फिर पडोस के छत पर
काका की रेडियो में बजती
ले के पहला-पहला प्यार
वाला धुन
मजरूह साहब याद आ जाते है
चाय माँ की हाथों की
लगने लगती है
थकान उतर जाती है
बोझिल सूरज ढल जाता है
मैं पीछे मुड़ता हूँ
तस्वीर एक शक्ल का
रूप ले लेती है
मैं देख उसे मुस्कुराता हूँ
फिर उसे उसके हाल पे छोड़
अपने कमरे में लौट आता हूँ।
नितेश वर्मा
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