कुछ हिसाब से ज्यादा ही करते है पापा
पूछते नहीं बस हर दाम भरते है पापा।
इन्हीं आँखों से देखा है उनको हर उम्र
अब इन्हीं निगाहों से क्यूं डरते है पापा।
सोच-विचार के अब भी लिखा करते है
मुझमें एक एहसास सा यूं रहते है पापा।
उनकी ताउम्र की कमाई आज लूटी है
घर बच्चे और समाज की सहते है पापा।
नितेश वर्मा
पूछते नहीं बस हर दाम भरते है पापा।
इन्हीं आँखों से देखा है उनको हर उम्र
अब इन्हीं निगाहों से क्यूं डरते है पापा।
सोच-विचार के अब भी लिखा करते है
मुझमें एक एहसास सा यूं रहते है पापा।
उनकी ताउम्र की कमाई आज लूटी है
घर बच्चे और समाज की सहते है पापा।
नितेश वर्मा
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