Tuesday, 15 September 2015

सपने आँखों में भर के उड चले

सपने आँखों में भर के उड चले
हम परिंदे है इस जमीं से दूर चले
होंगे पूरे हर ख्वाब हम मानते है
मुठ्ठियों में बांधे बादल घुमड़ चले
सपने आँखों में भर के उड चले।

इन छोटे-छोटे तारों के संग
अपनी एक महफ़िल सजानी है
इन टूटी-टूटी सितारों से
बड़ी सी इक धुन बनानी है
लेके ऐसी उड़ान हम बढ चले
आसमां को अपना बनाकर के चले
सपने आँखों में भर के उड चले।

जीये हर पल अब बेखौफ
सताएँ ना मुझको कोई दौर
कोई भी हो अब कैसा भी हो
कहना नहीं मुझे कुछ उससे और
ऐसे ही जीतने की मेरी दौड़
करकें इरादे जमीं के परिंदे मुड़ चले
सपने आँखों में भर के उड चले।

नितेश वर्मा

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