उस दिन समझ आया
मैं कुछ नहीं
सब अपनी बात
एक-दूजे से कर रहे थे
सुन सिर्फ़
मैं रहा था
कहने को अल्फाज कम थे
मगर थे कुछ जरूर
एक पहल हुई खुशी की
जब माँ आयी
सब चुप हो गये
और हवाओं में वहाँ
सिर्फ मैं था
मैं और मेरा जिक्र।
नितेश वर्मा
मैं कुछ नहीं
सब अपनी बात
एक-दूजे से कर रहे थे
सुन सिर्फ़
मैं रहा था
कहने को अल्फाज कम थे
मगर थे कुछ जरूर
एक पहल हुई खुशी की
जब माँ आयी
सब चुप हो गये
और हवाओं में वहाँ
सिर्फ मैं था
मैं और मेरा जिक्र।
नितेश वर्मा
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