मैं भी खामोश था और वो भी कुछ ना बोलें
बस दोनों थे रहे नाराज मगर कुछ ना बोलें।
एक दिन हल्की बारिश सी हुई थी शहर में
भींगे थे दो जिस्म जुबाँ मगर कुछ ना बोलें।
हर आँखों से बूंद छलक जाता है बेहिसाब
आँखों में है उसके धूल मगर कुछ ना बोलें।
दूर रहते है सारे सयाने उस बस्ती के वर्मा
सब तंगहाल ही जी रहे मगर कुछ ना बोलें।
नितेश वर्मा और कुछ ना बोलें।
बस दोनों थे रहे नाराज मगर कुछ ना बोलें।
एक दिन हल्की बारिश सी हुई थी शहर में
भींगे थे दो जिस्म जुबाँ मगर कुछ ना बोलें।
हर आँखों से बूंद छलक जाता है बेहिसाब
आँखों में है उसके धूल मगर कुछ ना बोलें।
दूर रहते है सारे सयाने उस बस्ती के वर्मा
सब तंगहाल ही जी रहे मगर कुछ ना बोलें।
नितेश वर्मा और कुछ ना बोलें।
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