Monday, 7 September 2015

मैं भी खामोश था और वो भी कुछ ना बोलें

मैं भी खामोश था और वो भी कुछ ना बोलें
बस दोनों थे रहे नाराज मगर कुछ ना बोलें।

एक दिन हल्की बारिश सी हुई थी शहर में
भींगे थे दो जिस्म जुबाँ मगर कुछ ना बोलें।

हर आँखों से बूंद छलक जाता है बेहिसाब
आँखों में है उसके धूल मगर कुछ ना बोलें।

दूर रहते है सारे सयाने उस बस्ती के वर्मा
सब तंगहाल ही जी रहे मगर कुछ ना बोलें।

नितेश वर्मा और कुछ ना बोलें।

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