याद वो सबकुछ अचानक आ गया
तुम्हारा वो बिना बात के चले जाना
के अब मैं तुम्हारी नहीं हूँ
का एक आवाज़ बार-बार
जो कानों में हरपल गूँजता रहता
मैं शाम को आँगन में बैठ के सोचता
आखिर अब क्या होगा
पापा का अचानक अखबार से
चेहरा हटाकर मुझे गुमसुम देखना
शाम की चाय लेकर
जब माँ मेरा सर सहलाती
लगता जैसे अब सब ठीक हो जायेगा।
नितेश वर्मा और माँ
तुम्हारा वो बिना बात के चले जाना
के अब मैं तुम्हारी नहीं हूँ
का एक आवाज़ बार-बार
जो कानों में हरपल गूँजता रहता
मैं शाम को आँगन में बैठ के सोचता
आखिर अब क्या होगा
पापा का अचानक अखबार से
चेहरा हटाकर मुझे गुमसुम देखना
शाम की चाय लेकर
जब माँ मेरा सर सहलाती
लगता जैसे अब सब ठीक हो जायेगा।
नितेश वर्मा और माँ
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