Tuesday, 15 September 2015

जो बात मैं तुमसे कहते-कहते रह गया

जो बात मैं तुमसे कहते-कहते रह गया
जिस बात को तुमने अनसुना कर दिया
अब फिर वो बात मुझसे होगी नहीं
एक रोज़ था तुमने जिसे मना कर दिया

बिखरेंगे ख्वाब कई, शायद रातें मुहाल हो
जुबां धड़कन समझेगी, आँखें कहीं ढूंढेगी
पता उस मंजिल का ना होगा कभी संग
बात बदलेंगी, शामें ये अक्सर तड़पायेंगी
तुमने जिसको यूं ही बैठें बेगाना कर दिया
अब फिर वो बात मुझसे होगी नहीं
एक रोज़ था तुमने जिसे मना कर दिया।

अब खामोशियों में ना यूं तलाशों मुझे
मैं घबरा जाता हूँ हर इक वीरानियों में
आँखों में भरकर पानी तस्वीर उतारीं है
गिरते है जब-जब मैं खुद में टूट जाता हूँ
तुमने मेरी मुहब्बत को बहाना कर दिया
अब फिर वो बात मुझसे होगी नहीं
एक रोज़ था तुमने जिसे मना कर दिया।

अब फिर वो बात मुझसे होगी नहीं
एक रोज़ था तुमने जिसे मना कर दिया।

नितेश वर्मा

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