Thursday, 17 September 2015

वो रेश्मी सी उसकी हरी साड़ी

जब भी रूठ जाती है वो
मैं भी सिमट जाता हूँ
वो रेश्मी सी उसकी
हरी साड़ी
कत्थई खनकती चूड़ियाँ
मासूम सा चेहरा
जुल्फें हवाओं के संग
लब खामोश तंग से
आँखें जब भी ऐसी
मुझे घूरती हैं
मैं शर्म से मर जाता हूँ।

नितेश वर्मा

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