मैं भी सबकुछ भूलकर
आगे निकल जाना चाहता था
उन बहती हवाओं के साथ
मुड़ जाना चाहता था
उनके खिलाफ होने का ही
ये सबक मिला है मुझको
मैं ठहर के देखता रहा
बारिश एक तूफाँ के संग आयी थी
मैं भींगता रहा
उस पत्ते की तरह
कभी मचलता, उछलता
तो आखिर में आकर टूट जाता
और तुम चली गयी
बस यहीं कुछ याद आता है मुझे
जब भी इन बारिशों में
मैं अकेला होता हूँ।
नितेश वर्मा
आगे निकल जाना चाहता था
उन बहती हवाओं के साथ
मुड़ जाना चाहता था
उनके खिलाफ होने का ही
ये सबक मिला है मुझको
मैं ठहर के देखता रहा
बारिश एक तूफाँ के संग आयी थी
मैं भींगता रहा
उस पत्ते की तरह
कभी मचलता, उछलता
तो आखिर में आकर टूट जाता
और तुम चली गयी
बस यहीं कुछ याद आता है मुझे
जब भी इन बारिशों में
मैं अकेला होता हूँ।
नितेश वर्मा
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