Thursday, 17 September 2015

मैं भी सबकुछ भूलकर

मैं भी सबकुछ भूलकर
आगे निकल जाना चाहता था
उन बहती हवाओं के साथ
मुड़ जाना चाहता था
उनके खिलाफ होने का ही
ये सबक मिला है मुझको
मैं ठहर के देखता रहा
बारिश एक तूफाँ के संग आयी थी
मैं भींगता रहा
उस पत्ते की तरह
कभी मचलता, उछलता
तो आखिर में आकर टूट जाता
और तुम चली गयी
बस यहीं कुछ याद आता है मुझे
जब भी इन बारिशों में
मैं अकेला होता हूँ।

नितेश वर्मा

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