Tuesday, 20 December 2016

यूं ही एक ख़याल सा..

छोड़ मुझे!
-तेरे में ऐसा क्या है जो मुझे तेरे अलावा कुछ और दिखता ही नहीं।
हाथ छोड़ दे मेरा.. बहुत दर्द हो रहा है!
-मैंने इन्हें ना छोड़ने के लिए थामा हैं.. मैं तुम्हें कभी छोड़ नहीं सकता।
चुपचाप से छोड़ दे मेरा हाथ.. वर्ना मैं शोर मचा दूंगी।
-क्या कहेगी.. शोर मचाकर? ज़रा मैं भी सुनूँ!
मर जा तू कहीं जाकर। मुझे तो छोड़ दे!
-नहीं.. नहीं छोड़ूँगा! और मरकर भी कहाँ जाऊँगा.. वापस आकर तुझमें ही लिपट जाऊँगा।
हें! अज़ीब लड़का है ये।
-अज़ीब तो हूँ थोड़ा.. मग़र तुझसे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ.. कभी आजमाइश में डालकर देख लेना।
इसकी कोई जरूरत नहीं! मुझसे दूर ही रहा कर तू।
-कितनी दूर?
कुछ ऐसा कि मैं ज़मीं बन जाऊँ और तू आसमां।
-काफ़ी बेहूदगी भरा ख़याल है.. पता नहीं तेरे हलक से ये कैसे उतर गया?
अब जो मेरे दिल में है वहीं ज़ुबाँ से उतरेगी ना!
अब छोड़ दे मेरा हाथ।
-छोड़ दूँ?
हाँ! छोड़..
-तुझे पता है मेरी माँ क्यूं कहती है?
नहीं! और मुझे कैसे पता होगा ये की तुम्हारी माँ क्या कहती है?
-सुन! मेरी माँ कहती है - अग़र लड़की जब मर्द से हाथ छुड़ाने लगे ना तो ये मत समझो की वो तुम्हें छोड़ के जा रही है बल्कि ये समझ लो कि वो तुम्हें छोड़ के जा चुकी है।
बकवास मत करो!
-तुझे इसका इल्म नहीं है इसलिए तुझे ये बकवास ही लगेगा। ख़ैर तू जा.. मैंने हाथ छोड़ दिया है तेरा।
थाम के रख.. और जरूरत पड़े तो हक़ जता लिया कर। तू मर्द का बच्चा है.. शेर का नहीं जो डर जायेगा।
-तू अज़ीब है!
तुझसे तो कम। ले पकड़ के दिखा फ़िर से!
-अरे! जा.. तुझे पकड़ के रखूँगा मैं। किसी और को पकड़.. आईने में ख़ुदको इक दफ़ा निहार फ़िर कोई बात किया कर!
मर जा कहीं जाकर कुत्ते!
-मैं नहीं मरता वो भी इतनी सी छोटी बेइज्जती के बाद.. कभी नहीं। और तबतक नहीं मरूँगा जबतक तू ख़ुद मुझसे आकर नहीं कहेगी की ले थाम ले.. इन हाथी जैसे हाथों को.. और मैं थामूँगा और उस बोझ से फ़िर मर जाऊँगा। वज़्न कम कर अपना भगवान के वास्ते!
चल अब कट ले जल्दी।
-हाँ.. हाँ! जा रहा हूँ रे हाथी.. ज्यादा चिंघाड़ मत!

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

जब कोई लिहाफ़ उधेड़ता रहता है

जब कोई लिहाफ़ उधेड़ता रहता है
एक जिस्म क़ैद हो मिलता रहता है।

जब मैं वीरान हो जाता हूँ कहीं पर
एक शख़्स ख़ुदमें चीख़ता रहता है।

बिगाड़ा हुआ है ये शह्र मुहब्बत में
और एक आशिक़ लड़ता रहता है।

जो यक़ीन हो जाता उसे मुझपर यूं
कौन कहता जाँ बिलखता रहता है।

हवाएँ रूख़ बदल रही हैं अब वर्मा
बदन ये ख़ुदमें अकड़ता रहता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मुहब्बत मैं तकलीफ़ हूँ क्या

मुहब्बत मैं तकलीफ़ हूँ क्या
इतना बड़ा कमजर्फ़ हूँ क्या?

मुझे बर्बाद करती रही इश्क़
मैं मिटता हुआ हर्फ़ हूँ क्या?

शाम कल धुएँ में मिली मुझे
पिघला हुआ मैं बर्फ हूँ क्या?

वो दीदार आँखों में ज़ब्त है
तस्वीर से उठा तर्फ़ हूँ क्या?

दर्द रात देर तक रही वर्मा
सुब्ह का कोई जर्फ़ हूँ क्या?

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे

वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे
जब लोग मुझसे सवाल करते थे
जब मैं मुँह ढ़ककर सो जाता था
लोग जब लानत भेजते थे मुझपे
मैं जब जीता था दूसरों के भरोसे
जब ये बेरहम ज़माना नोंचता था
मेरे ख़ाल को माँस से अलग कर
मैं चीख़ता था इक ख़ामोशी में
जब लोग बेहूदगी बताते थे इसे
जब ये ख़ून ठहर जाता था मुझमें
ज़हर होकर फ़ैल जाता था जब
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे

जब खुले बर्तन खटकते थे रात में
जब ये घर अँधेरे में चूर रहता था
जब लिहाफ़ सर्दियों से हार जाती
जब आँख खाली-खाली रह जाती
रात जब मातम के लिये आती थी
जब थकन बैठ कर हो जाती थी
किताब जब कुछ नहीं बताती थी
मेरा हारना उन दिनों में वाज़िब था
रो लेना बिलखकर ज़ायज भी था
तमाम लोगों के पत्थरों से ज़ख़्म
और आह! भरकर फ़िर लौटना
इस तरह इन महीनों का गुजरना
भूलाता नहीं है दिल कुछ भी ये..
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इस तरह ज़माने में कुछ और हुआ नहीं

इस तरह ज़माने में कुछ और हुआ नहीं
मैं ठहरा रहा.. किसी को गौर हुआ नहीं।

इश्क़ भी किया, काम भी करता रहा मैं
मगर ज़ाहिर करुँ शउरे तौर हुआ नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

जेल गए हो कभी तुम?
-क्या?
क्या.. क्या? सीधा सा सवाल है।
-काफ़ी वाहियात सा सवाल है.. सुधर जाओ! अच्छे लड़के जेल नहीं जाते।
हा हा हा!
-इसमें हँसने वाली कौन सी बात थी?
अच्छा हटाओ ये सुनो.. जेल गए हो तुम कभी?
-फ़िर वही सवाल? नहीं गया यार!
तो सुनो! मर्द एक बार जेल नहीं गया तो फ़िर क्या ख़ाक काम किया।
-अब मैं तुम्हारे लिए जेल भी जाऊँ?
जाऊँ का क्या मतलब है.. जाना ही पड़ेगा।
-अरे यार! मैंने ये तुमसे मुहब्बत ही क्यूं कर ली?
वो सब नहीं पता मुझे। तुम्हें तो जेल जाना ही पड़ेगा मेरे लिए.. कमसेकम एक बार तो ज़रूर।
-यार! तुम्हारा वश चले तो.. मुझे तुम जहन्नुम भी भेज दो। तुम्हें नहीं लगता तुम मुझे हर बार इस इश्क़ का हवाला देकर तंग किया करती हो?
अग़र इश्क़ में वादे शर्त के मयार पर खड़ी हो ना तो समझो की इश्क़ डूब गया तुम्हारा।
-बेवकूफ़ मत बनाओ मुझे! मैं सब समझता हूँ.. चला जाऊँगा जेल तुम्हारे लिए। मगर हाँ.. सिर्फ़ एक बार ही जाऊँगा.. समझी तुम।
हाँ! समझ गई। अब सुनो..
-सुनाओ.. अब क्या सुनाना रह गया?
आज रात तुम मुझे लेकर भाग जाओ.. दिखा दो सबको कि तुम एक असली मर्द के बच्चे हो।
-इसमें दिखाना क्या है, मैं हूँ एक मर्द का बच्चा।
फ़िर साबित करो इसे आज की रात।
-मरवाओगी तुम मुझे।
डर गए क्या?
-यार सीधे-सीधे थल्ले लगने वाली बात करती हो तुम।
अग़र थल्ले नहीं लगने ना तो इश्क़ मत किया करो। मेरा हाथ झटकों और फ़िर निकल जाओ मुझसे ख़ुदको छुड़ाकर।
-यार! तुम कुछ अज़ीब नहीं हो?
बस तुम्हें ही लगता है.. और जब तुम ये सीने पर अपनी हाथों को बाँध कर मुझको देखते हो ना तो एक बार ख़याल आता है तुमसे कोई शर्त रखूँ ही ना.. हाय! यार.. बहुत प्यारे हो तुम।
-फ़िर अपनी दिल की सुना करो Darling!
सुन लूंगी.. एक रात हवालात में काटो तो सही पहले।
-तुम बहुत ज़ालिम हो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

इतनी तड़पा के मुझको यारब मिली वो

इतनी तड़पा के मुझको यारब मिली वो
के कोई हरकत नहीं हुई जब मिली वो।

खुशियाँ चेहरे पर फ़ैल ना सकी तमाम
हैरत आँखों में दफ़्न हुई तब मिली वो।

मैं मयख़ाने में मसरूफ़ था दिनों-दिन
निकलते ही सबने पूछा कब मिली वो।

हालांकि अभी टूटना मुनासिब नहीं है
जुल्फों की हयात ला-नसब मिली वो।

नज़रें मिलने को उतारूँ हैं मेरी वर्मा
किसी सर्दियों की रात अब मिली वो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

अरे.. क्या ख़ाक मुहब्बत! ख़ामाख़ाँ की बातें हैं ये सब.. क्या-क्या बताऊँ मैं.. अलमिया ये है कि..
तमाम रात कुफ़्रे-हिज़्र में गुजारी
और सुबह मुँह धोने को बैठ गए।
-बड़े चिड़चिड़े से लग रहे हो.. क्यूं क्या हुआ?
मत पूछो यार!
-ठीक है.. मत बताओ।
मतलब पूछो.. वो तो ऐसे ही कहने वाली बात है ना..
कि हमपे जानेमन कितने ग़म मुस्तैद रहते हैं
हलक में जान रहती है लब ख़ामोश रहते हैं।
-हुम्म्म्म! कबसे हुआ है ऐसा हाल?
पता नहीं! बस बेचैन रहता हूँ हर वक़्त.. उसकी याद आती है तो सौ परेशानी भी साथ आती हैं। अरे यार! मुझे तो चैन कभी मयस्सर ही नहीं।
-लेकिन याद तो कभी-कभी आती होगी?
तुम साँस लेती हो?
-ये कैसा सवाल है?
सवाल नहीं है ख़ातून ज़वाब है.. मुहब्बत की बातें किताब पढ़कर करने वाले अग़र चुप ही रहे तो ज्यादा अच्छा है।
-Shut up!
How dare you?
-मुहब्बत की है मैंने.. वो अलग बात है मैंने तुम्हारी तरह कोई तमाशा नहीं बनाया उसका।
मैं तमाशा बना रहा हूँ? अज़ीब बात मत करो।
-कुछ अज़ीब नहीं कहा है मैंने! दिमाग़ से सोचो और वाहियात ख़याल से बाहर निकल आओ जनाब।
तुम्हारे मुँह लगना ही नहीं है मुझे.. हर वक़्त ज्ञान बघारती रहती हो।
-मैं तुम्हें मुँह से लगाऊँगी कभी? जाओ यार मुँह धोकर शक्ल देखो अपनी.. और मैं क्या कोई भी तुम्हें मुँह लगाने से पहले सौ बार सोचेगा।
यार! तुम ताने मारना छोड़ो भी.. हद होती है किसी भी चीज़ की।
-कमाल करते हैं जनाब.. मुँह भी लगते हैं और इज्जत की फ़िक्र भी करते हैं.. हँसीं आती है.. ख़ैर..
ख़ैर क्या? बात पूरी करो।
-मुझसे नहीं होगी कोई भी बात पूरी.. मैं जा रही हूँ।
रूको!
-कोई मतलब नहीं अब रूकने का जानेमन।
जाओ फ़िर!
-तुम भी चलो।
नहीं.. मैं नहीं जाऊँगा। तुम जाओ।
-अकेला छोड़ रहे हो मुझे?
तुम्हें जाने की जल्दी है बस.. और कोई बात नहीं है।
-मैं रूक भी सकती हूँ.. रोक के तो देखो!
नहीं तुम जाओ.. कंपकपाती ठंड में तुम्हारा झुर्रियों वाला चेहरा जब और सिकुड़ता है ना तो मुझे बहुत चिढ़न होती है।
तुम चली जाओ यही ठीक रहेगा.. मैं ठहर जाऊँ यही अच्छा है।
-झुर्रियां हैं मेरे चेहरे पर? अरे जाओ.. तुम्हारे पूरे ख़ानदान में भी मुझसे खूबसूरत कोई नहीं होगा। अकेले मरो.. मैं जा रहीं हूँ।
वही कर रहा हूँ.. जाओ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

Monday, 19 December 2016

इस तरह तमाम बोझ मूसल्लत हैं जिस्म पर हमारे

इस तरह तमाम बोझ मूसल्लत हैं जिस्म पर हमारे
पागल होकर भटकते हैं घर है तिलिस्म पर हमारे।

हमारी जात तो हमसे ही शिकायतें करती रहती हैं
सवाल भी उठे हैं तो किस-किस किस्म पर हमारे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मैं बेकरार हूँ के मुझको करार आ जाये

मैं बेकरार हूँ के मुझको करार आ जाये
भले इस जिस्म में, कहीं दरार आ जाये।

क्या खोया है मैंने इस ज़िंदगी में साहब
काश कमाई वो पुरानी हज़ार आ जाये।

दर्द भी बहुत होती हैं, पामाल रस्तों पर
चलो फ़िर.. के ATM या बार आ जाये।

जो ज़ेब खाली हो तो तकलीफ़ होती है
ये जीत भी क्या जो फ़िर हार आ जाये।

हम ख़ामोश रहे मुनासिब मानके वर्मा
हम बोलने लगे के तरफ़दार आ जाये।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अभी मरा नहीं हूँ मैं, बंद करो दफ़नाने मुझे

अभी मरा नहीं हूँ मैं, बंद करो दफ़नाने मुझे
इक आवाज़ क्या उठाईं लगे हो मिटाने मुझे।

शख़्स वे पागल नहीं थे जो खड़े थे रस्तों पर
मुनासिब तुम ही नहीं जो लगे समझाने मुझे।

क्या हुआ है तुमको इस मुकाम पर आकर
लगे हो क्यूं अब आँखें तरेर के दिखाने मुझे।

ग़रीबियत लोगों के ज़ुबाँ पे भूख लिखती है
तन की अकड़ कहती है पैसे हैं खाने मुझे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

पत्थरों की भीड़ में एक शख़्स हूँ साहब

पत्थरों की भीड़ में एक शख़्स हूँ साहब
चीख़ता हूँ ख़ुदमें कैसा अक्स हूँ साहब।

फ़िर भटक गया हूँ एक सराब होके मैं
एक तिलिस्म है अज़ीब रक्स हूँ साहब।

वही पुरानी आदत है जो बिगड़ती रही
वही अंदाज़ है आपका इश्स हूँ साहब।

आप मुंतज़िर थे जानकर हैरान है हम
आप भटक गए मैं तो नफ़्स हूँ साहब।

क्यूं इश्क़ में ये ज़ाहिली बेचैनी है वर्मा
मैं क्या कहूँ मैं ख़ुद ही नक़्स हूँ साहब।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

आपपर किसी ने आज तक Line मारी है?
ये क्या बेहूदगी है?
बेहूदगी नहीं है! बस एक सवाल है।
मुझे पता है! लेकिन एक बहन अपने भाई से ऐसे सवाले नहीं पूछा करती।
किस बाबा आदम की बातें कर रहे हैं आप? आजकल ज्यादातर Settings तो बहनें ही करवाती है। Number ले आती हैं.. उसकी दोस्त बनकर Calls भी करती हैं.. और तो और Convince भी कराती हैं उन्हें! समझा करिए.. अब बताइये? किसी ने कभी Line दिया है आपको?
तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है.. ईलाज़ कराओ अपना।
मैंने तो करवा लिया है आप भी देख लो अपना.. ये किताब में जो घूरकर देख रहे हो ना.. नाम भी पता है उसका?
चलो जाओ! नीचे जाकर पढ़ाई करो..
नहीं.. नहीं जाऊंगी मैं! जबतक आप मुझे बताऐंगे नहीं कि आपपर किसी ने Line मारा है कि नहीं?
मेरा दिमाग़ ख़राब हो रहा है पहले एक Cup चाय पिलाओ.. फ़िर बातें होंगी।
बेवकूफ़ है आप बहुत! ऐसे शर्माते रहे ना तो एक दिन चिड़िया उड़ जायेगी और आप देखते रह जाओगे बस।
हें.. चिड़ियाँ? क्या मतलब है तुम्हारा?
मतलब कुछ नहीं है। किताब से इश्क़ फ़रमाइये.. मैं चाय ले आती हूँ।
अच्छा सुनो! रहने दो चाय अभी..
फ़िर?
एक बात करनी है तुमसे!
तो कीजिए।
वो कौन है जो मुझे सोने नहीं देती.. जिसका अक़्स मुझे बेचैन करता है.. जो पल भर भी ख़्वाब में दूर हो तो पसीने से सारा जिस्म भीग जाता है.. जिसकी छाँव में धूप का कोई ज़िक्र नहीं होता है.. शायद! वही है जो मुझे Line मारती है या मैं उसपर फ़िदा हो जाता हूँ। कुछ ठीक-ठीक नहीं बता सकता।
अच्छा? इतना अज़ीब होता है?
यार! तुम्हें अज़ीबियत की पड़ी है.. यहाँ हर रोज़ मेरी जान निकलती है।
भाई! ये बंजारे की तरह आप कबसे जी रहे हो?
मैं बंजारा नहीं हूँ.. मेरा ठिकाना है.. ऊपरवाले की करम से अपना मकान है।
भाई! बंजारे वे नहीं होते जिनका अपना कोई ठिकाना ना हो.. बंजारे तो वे होते हैं जो किसी तलाश में भटक रहे होते हैं.. जिन्हें कोई ना कोई फ़िक्र सताती रहती हैं.. जो ख़ुदमें एक सराब पालकर चलते हैं और बस भटकते रहते हैं.. वे बंजारे होते हैं।
तुम ठीक कह रही हो लेकिन पता नहीं क्यूं.. दिल तुम्हारी इन बातों को मानना नहीं चाहता।
भाई! दिल कब कुछ मानता है.. उसपर या तो थोपा जाता है या जबरन मनवाया जाता है।
हुम्म्म्म!
भाई किताब घूरने लगता है और बहन चाँद।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

निकलकर इस धूप से छांव में आ जाइये

निकलकर इस धूप से छांव में आ जाइये
परेशान ना होइये, मेरे दांव में आ जाइये।

है सवाल जो मध्ये-नज़र मुहब्बत में मेरी
पायल सी खनकती है पांव में आ जाइये।

सुकून जब दिल को आये ना पल भर तो
यकीन करिए और ये गांव में आ जाइये।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

क़िस्सा मुख़्तसर : मोआशरा

आज जो भी हालात है मोआशरे में उसका ज़िम्मेदार कौन है? जवाब बहुत आसान है अगर हम इस बात को मान ले तो- हम ख़ुद!
हम ख़ुद ही हैं जो मुल्क को चलाने के लिए जिन नेताओं को Vote करते हैं वो बदकिस्मती से ज्यादातर अँगूठा छाप होते हैं। एक सस्ता सा उदाहरण ले ले तो कुछ आसान हो जाएं-
एक लड़का है.. जिसके परिवार वाले १५ लाख रुपये देकर उसे नौकरी पर लगाते है और बाद में ऊपरवाले की मेहरबानी देकर नियाज़ी बनते है, लेकिन वो बदकिस्मत ये कभी नहीं सोचते की उन्होंने किसी का हक़ मारा है।
एक वाक्या सुनिये.. कोई कहानी नहीं है इसमें.. ये एक कड़वा सच है जिसका घुँट हमारे जैसे ही लोग हर रोज़ पीते हैं.. ख़ैर, सुनिये..
हमारे यहाँ एक चचा हुआ करते थे। चचा सिद्दीकी.. नाम था उनका। पाँच वक़्त के नमाज़ी थे। हज़ किया करते थे। लोग पाकीज़गी और हलाल में उनकी कसमें खाया करते। चचा सप्ताह में एक बार आते ही आते थे। दीन की बातें करते.. ताबीज़-टंटो की बातें करते। अल्लाह के मेहरबान होने के क़िस्से सुनाते.. ऐसा समझिये की वो जब भी मिलते हमें लगता हम किसी फ़रिश्ते से मिल बैठे हैं।
एक दिन मैं चचा से मिला.. चचा का मूड कुछ ख़राब था उन्होंने मुझे झटक दिया और मेरे पापा से लगे कहने- इसे कभी बताया है तुमने.. ये क्यूं यहाँ आता है? क्या मिलाद है इसकी? आपने कभी बताया है कि मैं करता क्या हूँ?
ये सब सुनकर तो मेरा दिमाग़ बिलकुल ख़राब हो गया। दिन-भर मैं परेशान रहा शाम को जब पापा आएँ तो मैंने उन्हें बिठा लिया और सवाल किया- ये चचा सिद्दीकी करते क्या है? दिन-भर वो घूमते फ़िरते है लेकिन फ़िर भी इनके घर वो सब चीज़ मुहैया है जो कि एक अफ़्सर आला के घर में होता है।
पापा ने जब मेरा सवाल सुना तो मुझपर गुस्सा हो गए.. कहने लगे- क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? लगता है तुम्हारे चचा ने तुम्हारी कान भरी है।
मैंने कहा मुझे नहीं पता.. मैंने आपसे एक सवाल किया है आप उसका जवाब दे दे बस! अग़र चचा ने मेरी कान भरी है तो आप मेरी सवाल का जवाब देकर मेरी तसल्ली करें।
पापा ने उस दिन डाँट-डपटकर मुझे भगा दिया लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था अगले दिन फिर शाम को मैंने उन्हें बिठा लिया फ़िर वही सवाल कर दिया कि- ये चचा सिद्दीकी करते क्या है?
पापा ने देखा कि अब कोई उपाय नहीं बचा तो उन्होंने बताया- कि तुम्हारे चचा रेलवे में काम करते है.. हर ६ महीने में एक बार वो वहाँ जाते हैं और अपनी सारी हाज़िरी बनाते हैं.. ४०% Railway Superintend को देते है और बाक़ी का माल लेकर यहाँ चले आते हैं।
मैंने जब ये सुना तो मेरे कान से धुँए निकल गए। मतलब वो आदमी उस हराम के पैसे से हज़ भी करता है और ख़ुदको सच्चा इस्लामी भी बताता है? जो इंसान हमें ये बताता आया रहा है कि नमाज़ पढ़ने के लिए पाकीज़गी से ज्यादा अहमियत उसके हलाल होने से है और वो ऐसी कमाई पर ख़ुद ज़िंदा रहता है।
अब क्या हाल होगा इस मोआशरे का इससे बेहतर और कुछ नहीं ना? जहाँ तारीख़ियाँ झूठ की नींव पर रख दी जाएं उस मुल्क का हाल इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaMukhtasar

इक शिकायत की हाय जाँ निकल जाएं

इक शिकायत की हाय जाँ निकल जाएं
वो पूछ ले कुछ के ये ज़बाँ निकल जाएं।

दूर मुहल्ले में चराग़ मौजूद नहीं हैं अब
काश! के यहाँ से ये मकाँ निकल जाएं।

कोई आयेगा इस तरह ये मुमकिन नहीं
कोई छूटे अब के ये गुमाँ निकल जाएं।

सहर कुहासे से लिपटी रही थी तमाम
जो आग लगाओ ये धुआँ निकल जाएं।

है नहीं के यकीन अब ख़ुदपे मेरा वर्मा
दिल है टूटा, कब मेहमाँ निकल जाएं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

Hey! Why you're not coming? Anyone said anything to you?
You want to know the name..? It's you.. Just because of you I'm not coming.. You're the only reason!
Just shut up!
I'm not stopping myself.. You should to listen all that things.. what's going on my mind.
Why.. I?
Because, darling! You always doing the same things which hurts me.. Sometimes a lot.
I'm not hurting you ever.
Quite.. Boring! Huh..!
You blamed me?
Yes, I'm blaming you. Why you bothered with me..
Okay.. Okay! Ask me! What you want to ask?
Do you have a another boyfriend?
What rubbish! Shame on you!
What rubbish? There's nothing rubbish.. Why you are not answering my question?
Just because your question can't deserves a single word.. By the way, your question hurts me alot. It seems like.. Someone asked to you.. do you have a another father?
You.. Bitch!
Aaha! Stop screaming baby.. First fell your question then replied me, and I'm not a bitch.. You scoundrel!
You're calling me for this?
You can't deserves anything.. Stop there! Thank you for not coming..
अरे ये सब हटा दो भाई!
- और Cake?
बाहर फ़ेंको उसे जल्दी!
Hey! Listen.. I'm coming.. On the way!
Go home baby.. I'm going to sleep,now!
Please!
नया Cake लेकर आना.. और सुनो.. 10 minutes में आओ.. और आकर लड़ना मत! दिमाग़ ख़राब है मेरा.. मर-मरा जाओगे।
हें?
हाँ!
Love you.. Coming!
Everyone loves me.. Say something different!
Okay.. Bitch! I'm not coming.. Go to hell!
Hey.. You!
On the way.. Coming soon! 😆

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

यूं ही एक ख़याल सा..

तुम्हें क्या लगता है? अब वो फ़िर क्या करने वाला है?
कौन? क्या करने वाला है?
अरे वही!
वो लफ़ंगा.. मुझे तो लगता है अब वो मुँह छिपाकर इस शहर से भागने वाला है।
ऐसा नहीं है वो।
बहुत समझ है तुम्हें उसकी?
बनो मत.. मुझे तो लगता है अब वो तुम्हें फ़िर से Propose करेगा.. और वो भी सबके सामने.. बीच चौराहे पर.. तुम्हारी आँखों में आँख डालकर।
ऐसा करेगा वो?
हाँ! लग तो कुछ ऐसा ही रहा है मुझे।
तो मुँह नहीं तोड़ दूंगी मैं उसका.. बड़ा आया Propose करने वाला।
हाँ! वो तो तुम तोड़ ही दोगी फ़िर बैठ के जोड़ती रहोगी।
अरे जाओ तुमने मुझे अभी जाना ही कितना है!
खूब जानती हूँ तुम्हें मैं। दिल तोड़ने में बहुत मज़ा आता है ना तुम्हें। पहले तो दिल तोड़ दो.. इज्जत बचाओ फ़िर रात भर लिहाफ़ में रो-रोकर आँसू बहाओ। हाय! यार, उसके साथ मैंने कुछ ठीक नहीं किया.. अलापती फिरो।
बकवास बंद करो!
थम के रहा करो मुझसे.. मैं तुम्हारी कोई मुलाज़िम नहीं हूँ और ना ही कोई दिल फ़ेंक आशिक़.. समझी तुम?
निकलो अब तुम.. बहुत बड़बड़ा चुकी। अब चैन से मुझे सोने दो!
तुम अब सोओगी? क्या ग़ज़ब बात कर रही हो.. शर्म करो!
तुम कट लो यहाँ से.. मेरे पास तुम्हारे किसी सवाल का कोई जवाब नहीं है।
तो जवाब तैयार रखो.. कल मुकाबला करने आयेगा वो तुमसे।
मुकाबला?
हाँ! बेवकूफ़ तुम तो मुकाबला ही समझो.. इश्क़ में हारा हुआ आशिक़ बड़ा ख़ूंखार होता है।
उसका नम्बर है तुम्हारे पास?
हाँ! है।
फ़ोन लगाओ उसे अभी..
अभी.. अभी क्या कहोगी उससे?
तुम फ़ोन लगाओ।
सो गया होगा वो।
कैसे सो गया होगा.. करवटें ले रहा होगा कमीना। ख़्वाब देख रहा होगा।
तुम बहुत बुरी हो.. मैं जा रही हूँ सोने।
ऐसे कैसे चली जाओगी तुम?
ठहरो तुम! देख लो.. जा रही हूँ।
अरे! रूको ना! माफ़ कर दो.. तुम बस फ़ोन लगा के दो।
लो Ring जा रहा है..
अब काट क्यूं दिया?
नहीं रहने दो.. कल ही बात होगी उससे।
फ़िर रात भर?
रात भर.. मतलब?
मतलब कुछ नहीं है Sweetheart तड़पती रहो रात भर।
हें..! कमीनी.. मर जा कहीं जाकर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

अज़ीब इत्तेफ़ाक हुआ है यार क्या कहिये

अज़ीब इत्तेफ़ाक हुआ है यार क्या कहिये
हो गया है उनसे फ़िरसे प्यार क्या कहिये।

वो आयेंगी सपनों में आज की रात भी तो
रंग देंगी बदस्तूर दिले-दीवार क्या कहिये।

नहीं होना होता है जब कुछ भी भला मेरा
क्यूं मिलते हैं फ़रिश्ते-बाज़ार क्या कहिये।

हम कोई ग़ालिब नहीं जो दर्द अपना लेंगे
और ख़ुदा भी नहीं, ये मयार क्या कहिये।

दम घुटता रहा था अपनों के बीच में वर्मा
रिहा भी हुआ तो, अत्याचार क्या कहिये।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

हर ज़ुर्म को वो ज़ालिम यूं तहेगा हमेशा

हर ज़ुर्म को वो ज़ालिम यूं तहेगा हमेशा
घर ही बनेगा ऐसा के वो ढहेगा हमेशा।

ये मुमकिन ही नहीं है कि आप चुप रहे
तो छोड़िये वो भी चीख़ता रहेगा हमेशा।

ख़ंदा-पेशानी ज़हन में लेकर बैठे रहना
वर्ना हर नज़्र को वो बुरा कहेगा हमेशा।

यही मान लीजिए के दिल कमबख़्त है
एक सूनापन है जो यूं ही बहेगा हमेशा।

इक दर्द भी मूसल्लत है सीने पर वर्मा
क्या कहूँ क्या-क्या रोग़ सहेगा हमेशा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

दर्द भी बेहिसाब भर आये हैं मुझमें

दर्द भी बेहिसाब भर आये हैं मुझमें
जीने दो के साब मर आये हैं मुझमें।

सारी बातें सुनकर चुप रहा वो वहीं
उसकी ये हाल, डर आये हैं मुझमें।

मैंने कई बार उससे पूछा था जानी
रातें क्या ग़ज़ब कर आये हैं मुझमें।

ये बेकरारी ये जद्दोजहद ज़िंदगी में
बात करिए वे ठहर आये हैं मुझमें।

हम बेशक्ल मुहब्बत की किताब है
कई दास्तान, मग़र आये हैं मुझमें।

शायद वो नहीं समझेगा तुम्हें वर्मा
जिसका शहरे-घर आये हैं मुझमें।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

अब मुझसे एक भी काम नहीं हो सकता सुबह से दौड़ता फिर रहा हूँ अग़र ओलंपिक में इतना दौड़ता तो कमसेकम इस मुहल्ले में सबके घर एक-एक मैडल रखा होता।- पप्पू ने परेशानी में अपना फ़रमान सुनाया और अपने कमरे में चला गया।
लेकिन तू मैडल ले आता तो मुहल्ले में सबके घर क्यूं रखता अपना घर तो है ही।- मम्मी ने किचन से एक मंतर फूँक फ़ेंका।
वो इसलिए क्योंकि, मुझे पता है कि वो एक-एक करके आप ख़ुद उन्हें बाँट देती।- पप्पू ने भी ईट का जवाब ईट से दिया। वो क्या था ना.. माँ थी सामने वर्ना पप्पू से अच्छा पत्थर कोई नहीं फ़ेंकता।
मैं..मैं भला क्यूं किसी को कोई चीज़ देने लगी। पहले एक काम कर देख कोई आया है बाहर, शायद दूधवाला है, जाकर दूध ले ले बेटा। - मम्मी ने किचन से फिर पप्पू को काम सौंप दिया।
मम्मी मैंने एक बार बोल दिया ना, मैं नहीं जा रहा तो बस नहीं जा रहा।- पप्पू ने भी ढिठाई से जवाब दे सुनाया।
अच्छा याद आया वो मिश्राजी की बेटी होगी।
कौन मिश्राजी की बेटी?
अरे वो सुहानी, उसी को कुछ काम था। मैंने मना भी किया था लेकिन वो बोलने लगी की उससे तुम्हारी बात हो गई है, इसलिये वो आ रही है। शायद वही होगी।
पप्पू का इतना सुनना था कि वो दौड़ के भागता हुआ दरवाज़े पर गया, सामने सुहानी खड़ी थी। वो उसे देखता रह गया।
सुहानी ने अग़र उसे ना टोका होता तो वो सुहानी को अपने सपने में लेकर कहीं और चला गया होता और वो बारिश में बाहर भीगती रहती।
पप्पू को फिर तुरंत सुहानी का ख़याल आया और उसने दरवाज़ा खोल दिया।
अरे! तुम तो पूरी भीग गयी हो? -पप्पू ने ख़याल जताते हुए कहा।
नहीं भीगती अग़र तुम बुत बनकर नहीं खड़े हुए होते तो.. - सुहानी ने बड़े नाराज़ी से कहा।
अरे मुझे लगा दूधवाला होगा.. इसलिए.. पप्पू ये कहते-कहते चुप हो गया।
बड़े आएँ! दूधवाला होता तो इतनी देर तक दरवाज़ा ना खटखटाता.. एक बार नहीं खोलते तो वो कहीं और निकल गया होता।
टाँगे नहीं तोड़ देता मैं.. कैसे निकल जाता कहीं और..?
बस इसीलिए मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आती.. जब देखो मार-काट।
अच्छा छोड़ भी दो ना.. गुस्सा थूक दो!
कहाँ थूँकू?
उसके मुँह पर ही थूक दो बेटा! तीन दिन से उसने नहाया भी नहीं इसी बहाने नहा तो लेगा कमसेकम।- मम्मी ने किचन से ही बकवास लगा दी।
मम्मी.. - पप्पू ने माँ को समझाते हुए आवाज़ लगाया.. माँ चुप हो गई।
अच्छा ये बताओ तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ, बिलकुल।
नहीं बेटा वो नहीं जा पायेगा वो बहुत थका हुआ है मैंने तुम्हें बताया भी तो था।
मम्मी..- अरे छोड़ो.. इनकी तो बस यही आदत है। तुम बताओ कहाँ चलना है?
हुम्म्म्म!
अरे! बारिश में तुम धनिया लाने जाते नहीं हो और पतंगे उड़ाने का बहुत शौक है? क्या बात है?
पतंगे?- सुहानी ने पप्पू की आँखों में देखते हुए पूछा।
पतंगे? अरे! माँ क्या हो गया है आपके जोक्स को आजकल?
अरे! छोड़ो इन्हें तुम.. आजकल कोई सस्ती सी रोमांटिक नॅाबेल पढ़ रही है.. दिमाग़ सठियाया हुआ है इनका। तुम बात करो..
तो तुम चल रहे हो मेरे साथ..
कहाँ? बताओ तो सही?
मेरे साथ.. कहीं दूर इस बारिश में भीगने.. मैं अकेले नहीं जा सकती.. तुम चलोगे साथ मेरे?
हाँ! चल लूंगा.. लेकिन मुझे बारिश में भीगना कुछ ठीक नहीं लगता।
तुम भी ना कैसी बातें करते हो? तुमने समुंदर देखा है?
हाँ! क्यूं?
मैंने कभी नहीं देखा।
मैं नहीं जा रहा.. समुंदर दिखाने वो भी इस बारिश में।
तुम बड़े नवाब हो? कैसे नहीं चलोगे मैं देखती हूँ।
मैं नहीं जा रहा.. हाँ! मुझे याद आया मेरे सर में बहुत दर्द है मैं कहीं नहीं जा सकता। आह!
बहाने मत बनाओ।
कसम से.. अचानक बहुत तेज़ दर्द होने लगा है।
मैं दबा दू.. थोड़ी देर।
हाँ! दबा दो।
फ़िर चलोगे?
हाँ! नहीं चलूँगा तो तुम मेरी जान नहीं ले लोगी?
बेटा! धनिया भी लेते आना!
मम्मी..? क्या है ये..? हद है! 😆

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

ये अज़ीब दुनिया है अब यहाँ से निकल

ये अज़ीब दुनिया है अब यहाँ से निकल
ख़ामोशी अब तो तू मेरे ज़बाँ से निकल।

बहुत चीख़ता रहा है ये जिस्म चोटों पर
कुछ रहम कर तू, इस मकाँ से निकल।

चारों तरफ़ जो फ़ैल चुकी हैं वफ़ादारी
थोड़ा आग लगा, और धुआँ से निकल।

इक तिलिस्म क़ैद है, तुझमें सदियों से
इक प्यास ले औ' इस समाँ से निकल।

साहेबान ख़िताब आपका ही है समझें
कहने वाले के, फ़रेबी गुमाँ से निकल।

जो पत्थर तेरे कूचे का नहीं हुआ वर्मा
ये शह्र छोड़, औ' इस जहाँ से निकल।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तुम्हें याद आता है कुछ

तुम्हें याद आता है कुछ
वो बिताए हँसीं रात के लम्हे
जब मिल बैठती थी
हमारी निगाहें कई सवाल लेकर
जब चाँद आधा बादलों से निकलकर
फैल जाता था सुदूर ज़मीन पर
जब टकटकी लगाएँ हम देखते थे
चाँद पर चढ़ते किसी तारे को
जब शाम की जलती पुआल
धुँए में ग़म जो उड़ा ले जाती थी
जब तुम लिपट जाती थी सीने से
आँख में धुँए के जाने के बहाने से
मैं पूछता था जो वज़ह तुमसे
तुम और लिपट जाती थी सीने से
तुम्हें याद आता है कुछ
तुम्हें याद आता है कुछ

दिन में होते उजाले पर
जब ओस आकर चिपकती थी
जिस्म जब लिहाफ़ बनकर
सीने में आज़ाद हो जाती थी
उठता था जो बहसों का सिलसिला
तुम जब लड़ जाती थी मुझसे
जब तुम्हारी नाज़ुक उंगलियां
उलझी जुल्फों को संवारती थी
लट जब उलझकर गिरते थे
नर्म गुलाबी से उस होंठ पर
तुम झटककर जब सो जाती थी
मेरे कांधे पर रखकर अपना सर
मैं डूब जाता था उन आँखों में
तुम मूंद लेती थी जब उनमें मुझे
एक कश्ती गुजरती थी फ़िर
कई शाम हमारे तमाम शहर में
तुम्हें याद आता है कुछ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

तुमने फ़िर उसे बुला लिया?
-हाँ! तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?
पापा उसकी टाँगे तुड़वा देंगे.. फ़िर फ़रमाते रहना इश्क़ उस लंगड़े से.. बड़ी आयी कमीनी!
-वो टाँगे तुड़वा के चुप नहीं बैठने वाला.. करारा जवाब दिया था उसने पापा को.. याद नहीं है क्या तुम्हें?
सुना था मैंने.. भाई तो उसकी जान ले लेंगे अग़र वो तुम्हारी तरफ़ फटका भी तो। भाई के गुस्से को तुमने अभी देखा नहीं है। मेरी मानो तो ज्यादा पंगे मत लो और उसे जाने को कहो।
-अरे जाओ! मर्द का बच्चा है वो.. अपनी टाँगे तुड़वा लेगा मगर बिना मिले मुझसे तो वो हिलेगा भी नहीं.. वहाँ से।
खूब समझती हो तुम उसे.. फट्टू है वो एक नम्बर का। पापा के सामने तो एक आवाज़ नहीं निकलती उससे.. बड़ा आया मर्द का बच्चा।
- इज्जत कर जाता है वो उनकी। हालांकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि वो उनसे डर जाता हो।
अरे! नासमझ.. तू तो ख़ुद मरेगी ही.. साथ-साथ उसे भी ले डूबेगी। वो तो नासमझ है तू क्यूं बेवकूफ बन रही है?
-उसे सब समझ में हैं.. मैंने सारी बातें उसे खुलकर समझा रखी हैं। अब इतना भी बच्चा नहीं है वो.. बस 4 साल ही छोटा है वो मुझसे। अब उसे कोई शहजादी चाहिये तो इतना जोख़िम तो उठाना ही पड़ेगा.. वर्ना मरे कहीं और मेरी बला से।
अच्छा! बहुत खूब बोल लेती हो तुम.. इतराना छोड़ो और उसे फ़ोन लगाओ।
-मुझे पता है वो बिना मुझे देखे नहीं जायेगा और मैं कोई फोन नहीं मिला रही..
किस बात की बेचैनी है तुम्हें? कहाँ जायेगी उससे मिलकर.. वो एकदम कंगाल इंसान है.. सर्दियों की एक रात जब फुटपाथ पर बितायेगी ना तो सब होश ठिकाने आ जायेंगे।
-अरे इतना भी गिरा हुआ नहीं है वो.. कहीं फ़्लैट ले रक्खा है उसने।
हुम्म्म्म! तो बात यहाँ तक बढ़ गई है?
-ये तो कुछ भी नहीं.. बात बहुत आगे तक निकल गई है।
हाय.. दइया! कहीं तुम्हारे बीच कुछ ऐसा-वैसा ते नहीं..
-Exactly! अब आयी ना पते वाली बात पर तुम।
तुम्हारी तो ख़ैर नहीं। आज तो बेटा तुम्हारी चमड़ी तुम्हारे जिस्म से अलग हो ही जायेगी.. पापा को बस आने दो।
-अच्छा सुनो तो! ये बताओ कैसी लग रही हूँ मैं?
ख़ुद उसी से पूछ लेना.. सारी हदे तोड़कर जाओगी तो..
-सुनो तुम भी.. Lecture मारने लगी हो बहुत। अब ये आईना हटवा देना यहाँ से उसकी आँखों में ही देखकर पूछ लूंगी.. कैसी लग रही हूँ मैं?
और अग़र उसमें पहले से ही कोई और छिपा हुआ होगा तो..?
-कैसी मरी हुई बात कर रही हो?
जब यकीन होगा ना तो तुम ख़ुद आकर कहोगी आईना मत हटाओ.. उसे तोड़ दो और बाहर फ़ेंक आओ।
-इतनी ज़ालिम मत बनो!
तो तुम पहले उसे जाने को कहो.. मैं नहीं चाहती की आज कोई Dramatic Scene बने।
-मैं पीछे के रास्ते से मिल लू उसे.. Please! ना मत कहना अब।
चल मिल ले.. लेकिन जल्दी वापस आना आधे घंटे में मेरी मँगनी है.. समझी कुछ?
-हाँ-हाँ! सब समझ गई। ये बताओ कैसी लग रही हूँ।
बहुत प्यारी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

कौन है ये जो तुममें कबसे उलझता जा रहा है

कौन है ये जो तुममें कबसे उलझता जा रहा है
मैं क्या कहूँ! तू तो मुझसे ही कटता जा रहा है।

जिस्म सर्दियों में हर बार क्यूं बदलने लगती है
एक इन्सान मुझमें ही कबसे बँटता जा रहा है।

तुम बेइंतहा हिसाब करने में मसरूफ़ रहे हो
वो फ़कीर ही माशरे को तो ठगता जा रहा है।

दिल जो घायल हुआ, तो ख़याल ज़ाहिर हुआ
हम मुहब्बत निभाते गए वो मरता जा रहा है।

इस तरह खूब हल्ला मचाते फिरे हैं मुसाफ़िर
वर्मा, तू है जो बेहयाई से गुजरता जा रहा है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

फोन करूँ?
करो.. तुम्हें कबसे इज़ाजत लेनी पड़ गई?
नहीं.. वो मुझे लगा तुम मुझसे नाराज़ होगे।
मैं..? नहीं तो! ऐसा क्यूं लगा तुम्हें?
कल तुम्हें थप्पड़ जो मार दिया था.. इसलिए।
उसे याद मत दिलाओ..
जोर की लगी थी क्या?
हाँ! बहुत जोर की। ऐसा करारा थप्पड़ तो मैंने आज तक नहीं खाया था। तुम बहुत ज़ालिम हो यार.. बिलकुल मेरे बाप की तरह।
हैं.. सच में? ऐसा क्या?
और नहीं तो क्या?
तुम बदल तो नहीं जाओगे ना?
पता नहीं! इसका कोई जवाब नहीं है मेरे पास।
अग़र हालात बदलती हैं तो?
शायद! यकीन से नहीं कह सकता कुछ।
कुछ तो कहो..
ज़िद मत करो।
करूँगी.. कहो.. कुछ।
तुम बहुत बुरी हो.. मुझे तुमसे चिढ़न है.. वो बात अलग है तुम खूबसूरत भी हो।
किस बात से चिढ़न है तुम्हें..? मैं बहुत खूबसूरत हूँ इससे..?
नहीं! इससे की तुम्हारा कोई यकीन नहीं.. हर रोज़ तुम बदलती जाती हो और सारी बकवास मेरे सर पर उड़ेल देती हो। प्यार नहीं कर सकती ये अलग बात है लेकिन प्यार से रह तो सकती हो ना? इसमें क्या हर्ज़ है?
तुम बोल रहे हो ये..?
हाँ! अब फोन ही कर लो।
तुम करो.. ना!
चलो रहने दो.. बाद में करूँगा।
अभी करो..!
तुम मरो.. अभी.. Bye!
यार! तुम्हारा मसला क्या है?
अपना इलाज़ कराओ, बेवकूफ.. मुझसे बहस मत करो।
सुनो..?
मरो तुम.. Bye!

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

यूं ही एक ख़याल सा..

मुझे नहीं पता है.. अब वो कहाँ है?
और ना ही अब मैं किसी मृगतृष्णा में जीता हूँ।
वो शायद अज़ीब थी!
या मैं ही ख़ुदमें उलझा हुआ था.. पता नहीं।
उसे मेरी बातें ज़हर लगती थी.. मेरा बोलना उसे पसंद नहीं था। मेरी शक्ल उसे चिढ़ाती थी.. लेकिन जहाँ तक मैंने उसे जाना था वो शराब नहीं पीती थी.. और ना ही किसी बात पर एकदम से चुप हो जाती थी.. धीरे-धीरे वो बदलने लगी थी बिलकुल उतना जितना के किसी डूबते हुए सूरज के साथ हवाएँ बदलने लगती हैं।
वो बहुत खूबसूरत थी लेकिन अज़ीब थी.. वो बातें बेतरतीब किया करती थीं जिनका कोई मतलब नहीं हुआ करता था.. उसकी बातें अक्सर मुझे परेशान भी करती थी मगर वो अक्सर कहा करती.. मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे अपने कंधों पर सर रखकर रोने भी देती.. कभी यकायक सीने से भी लगा लेती। वो मुझे पागल बुलाया करती थी.. हालांकि पागलों सी हरकतें उसकी सारी थी। वो उलझी हुई रहती थी मगर ख़ुदको हमेशा सुलझा हुआ दिखाती थी।
मुझे उसकी इसी बनावटी दिखावे से अक्सर चिढ़न हुआ करती थी.. कई बार मैंने ये ज़ाहिर भी किया था.. मगर वो मुझसे इसके लिए कभी लड़ती नहीं थी.. उसकी इसी बात पर मैं उससे अक्सर हार जाया करता था। एक दिन मेरा उसपर ये ज़ालिम हाथ भी उठ गया.. फ़िर ये बातें रोज़ की होने लगी.. ये रोज़ का So Called Drama.. शायद उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आया।
फ़िर..
इक रोज़ वो मुझसे दूर चली गई.. दूर.. बहुत दूर.. इतनी दूर कि अब..
मुझे नहीं पता है.. अब वो कहाँ है?

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry #Prosepoetry #YuHiEkKhyaalSa

Tuesday, 15 November 2016

मुहब्ब्त

दिलों के बीच दरम्याँ होती हैं.. रुठना मनाना भी होता हैं.. प्यार के साथ-साथ नफ़रत करने का भी हक होता है.. लेकिन मुहब्बत में कभी जुदाई नहीं होनी चाहिए वर्ना मुहब्ब्त बे-ईमान हो जाती हैं।

P.S.- सोनम गुप्ता वाले Case से इसका कोई संबंध नहीं है। :)

दिल जो ज़ब्त हो जाएं तो समझना तुम

दिल जो ज़ब्त हो जाएं तो समझना तुम
मैं मर जाऊँगा तब मुझे भी देखना तुम।

सारे ग़मों पर पर्दे अपने-आप ही लगेंगे
उन पर्दों के पीछे से बच निकलना तुम।

मैं मान लूंगा ख़ुदसे हर शिकस्त अपनी
हर बार मुझसे इल्तिज़ा ना करना तुम।

ज़ख़्म मेरे बदन पर बरसों से उगती हैं
किसी हमदर्द पर यूं ना फिसलना तुम।

ये हवा भी अजीब सी लगती है हमपर
कोई आग बनकर मुझपर जलना तुम।

ये जो तेरी हसीन सी कायनात है वर्मा
इसी में आख़िर कभी मर बैठना तुम।

नितेश वर्मा और तुम।
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

अरे! ऐसे क्यूं शर्मां रही हो? क्या वो मैं नहीं जिससे तुमने शादी की थी?
चल, बदमाश!
हाय!
इन्हें तो छोड़ दो.. इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
तुम्हें पता है ये सिर्फ़ कंगन नहीं है ये तो हमारे दिल की आत्मा है जो हर बार एक-दूसरे से टकराने पर एक नज़ाकत से अपने छुअन को दूर तक सुनाती हैं।
अच्छा..! और ये चूड़ियाँ.. इनके बारे में भी तो कुछ कहो?
हुम्म्म्म! ये चूड़ियाँ नहीं है ये तो हम दोनों की बातें हैं जो हर बार एक-दूसरे से गले लगकर खिलखिलाती रहती हैं.. मुस्कुराती रहती हैं।
तुम भी ना.. तुम बड़े Unromantic हो!
हें..! ये क्या अज़ीब बात है?
इन्हें तो छोड़ो.. इन बालियों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
ये बालियाँ नहीं है ये तो मेरी दो बातें हैं जो तुमसे कहना चाहता हूँ।
अच्छा जी! क्या हैं वो दो बातें.. हमें भी तो बताओ?
हमेशा तुमसे प्यार करूंगा।
और दूसरी?
मुझे कभी धोखा मत देना, चाहे कुछ भी क्यूं ना हो जाएं। मैं सबकुछ बर्दाश्त कर लूंगा लेकिन मुझे किसी धोखे में कभी मत रखना।
यार! तुमने तो मुझे पूरा Senti कर दिया और वो भी आज।
नहीं! मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।
तुम भी ये बालियाँ पहनो ना मुझे भी तुमसे कुछ कहना है।
अरे! मैं बालियाँ पहनकर कैसा लगूँगा तुम ऐसे ही कह दो.. मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा।
दो बातें हैं- एक तो हमेशा प्यार करूँगी।
और दूसरी?
दूसरी की तुम मुझपर कभी शक़ मत करना, चाहें कुछ भी क्यूं ना हो जाएं। मैं हमेशा तुम्हारी ही बनके रहना चाहती हूँ.. मुझे ख़ुद से कभी अलग मत करना.. तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगी।
अरे! ऐसा मत कहो, प्लीज। Come.. सीने से लग जाओ.. ऐसी बातें कभी दुबारा मत करना।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

अरे! ये किस दौर से गुजर रहा हूँ मैं

अरे! ये किस दौर से गुजर रहा हूँ मैं
इम्तिहान में ही बसर कर रहा हूँ मैं।

दिल खाली मकान हुआ है मत पूछो
यूं टूटा नहीं हूँ बस बिखर रहा हूँ मैं।

किससे बताऊँ हाल-ए-दिल अपना
अब तो हर शख़्स से डर रहा हूँ मैं।

जब ख़्याल उतर आये सामने कोई
ये ना समझना के मुकर रहा हूँ मैं।

मैं तो खाली हाथ आया था रास्ते पे
अब इन्हीं पत्थरों पर मर रहा हूँ मैं।

वक़्त कुछ गुजर गया कुछ हैं वर्मा
सब कह रहे हैं के फिर रहा हूँ मैं।

नितेश वर्मा

इतनी उदास थी आँखें उसकी

इतनी उदास थी आँखें उसकी
कि शाम भी बहुत बेचैन रही
दिल कमबख़्त लिपटा रहा
एक सिहरन सीने में क़ैद हुई
कुछ पूंजी जमा थी अमानती
एक चोर चेहरा भी छिपा था
एक दरख़्त था, पुराना सा
जहाँ दो दिल लड़खड़ाएँ थे
कुछ छाले ज़ुबान पर थे
कहीं परिंदे फड़फड़ाएँ थे
सब एक धुँआ सा था.. तब
कहीं हमने लाश जलाएँ थे
वहीं फ़िर आज लौट आया
नम आँखें तो हैं.. लेकिन
वो बेचैनी और वो उदासी
उससे भी कुछ गहरी-गहरी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ग़लतबयानी: किस्सा मुख़्तसर

ये क्या बंजारन की तरह पसरी हुयी है। ये ले इन पुर्ज़ों में से कोई एक चुन, फ़िर आगे जो कुछ तय करना होगा वो बाद में तय होगा.. अब्बू ने कहा है।
ये सब क्या है?
ये सवाल मेरी होनी चाहिये थी। बहरहाल तू इनमें से कोई एक पुर्ज़ी चुन।
क्यूं?
शादी नहीं करनी है क्या तुझे?
शादी और अभी? अभी तो मैं पढ़ रही हूँ। मैं अभी शादी नहीं करूँगी। तू जा और अब्बू को सब समझा दे।
मैंने समझाया था लेकिन जो ज़वाब सुनकर आयी हूँ ना अग़र बता दूँ तो ज़मीन में शर्म से गड़ जाओगी तुम।
बता दे! मैं नहीं मरी जा रही।
शर्म कर! बदचलन।
क्या?
अब्बू ने कहा था,यार! मैंने जब कहा कि वो अभी कॅालेज जाती है, अभी उसकी उम्र ही क्या है? अभी वो शादी कैसे कर सकती है?
अब्बू ने फिर दो टुक में ज़वाब दे दिया - शादी की उम्र नहीं है और उस आवारा के साथ इश्क़ निभाने की उम्र है। बाइक पर बैठकर राउंड लगाने वाली उम्र की हो गयी है ना। तू जा और बस उसे इनमें से एक चुनने को कह दे। मुझसे मज़ीद बहस ना कर।
तो ले! चुन इनमें से कोई एक।
ले जा! ले जाकर फ़ेंक दे इसे कहीं। मैं किसी को नहीं चुन रही।
देख सुन! तू ना उस हरामी आवाराग़र्द को छोड़। वो ना रनबीर कपूर बनकर मुहल्ले की हर लड़कियों को लिफ्ट कराता रहता है। सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। बात मान और इनमें से कोई एक चुन।
मैं नहीं चुन रही किसी को। तू ही चुन ले तूने तो पहले भी चुन रखा है ना अपने शहजादे को भूलाकर किसी और को। क्या हुआ पड़ गया ना मोटा भैंसा तेरे गले में। अब गले में ले के लटकाती घूम रही है ना, बहुत ख़ुश होगी तू।
यार! लड़कियों का क्या है लड़कियां तो मुतासिर हो ही जाती हैं, इसलिये तो लड़के उन्हें देखने आते हैं, उनसे मुतासिर होते हैं तब जाकर निक़ाह पढ़ाया जाता है।
मैं नहीं मानती ये सब बकवास!
यार! मुझे देख वो मेरा कितना ख़याल रखते है। अग़र मैं उस फटीचर के साथ भाग गयी होती तो क्या होता? गिल्लू को देख! एक औरत के लिये उसकी औलादें ही सबकुछ होती हैं। अग़र आज गिल्लू ख़ुश ना होता.. तो मेरे इश्क़ का क्या मतलब रह जाता।
ख़याल करता होगा लेकिन प्यार नहीं। घर में लाइट्स तो ख़ूब होंगे लेकिन कैंडल लाइट डिनर कभी नहीं हुयी होगी। माना, सर भी दबाता होगा सबसे छिपाकर लेकिन आँख बचाकर चुटियाँ नहीं काटता होगा। वो तुम्हारी परवाह करता होगा लेकिन तुमसे इश्क़ नहीं।
तू चक्करों में फ़ँसी हुयी है मेरी जान! मैं तुझे कैसे समझाऊँ?
तू इसे चक्कर कह कर रही है?
शादी से पहले सब चक्कर ही होता है।
और शादी के बाद?
शादी के बाद.. परिवार, बच्चे, ज़िम्मेदारियाँ।
घुटता इश्क़.. ये भी तो होता है। मुझे पता है तू आज भी ख़ुश नहीं है। दिखावा चाहे तू लाख़ कर। आज भी तू समय बचाकर मुस्तफ़ा भाई को चुपचाप देखने आ जाती है। नज़रे बचाकर देखती है। छत पर जाती है.. निहारती है उन्हें। कपड़े उतारते हुये उनकी उंगलियों को छूना चाहती है और कमबख़्त तब पीछे से आकर गिल्लू का बच्चा तुझे पकड़ लेता है। तू क्या चाहती है? जिस तरह तू जी रही है मैं भी उसी तरह अपनी ज़िंदगी गुजारूँ?
तू फिर भाग जा उसके साथ।
कहाँ तक?
जहाँ तक भाग सकें।
किससे छूटकर भागू तुमसे, अब्बू से, या अम्मी से या भाई से? भागकर कहाँ जाऊँ? उस हरामी ने ऐसे प्यार में फ़ँसाया है कि उसके बिना अब जी भी नहीं सकती। कमीना बीच रस्ते पर मुझे पकड़कर मेरी नक़ाब उतारते हुये कहता है - इतनी ख़राब नाक छिपा रही हो और इतनी खूबसूरत आँखें देख रही है। हाय!
तो मर जा, कमीनी! कमसेकम हमारी जान तो छूटे इस मसलेहत से। हाय! अल्लाह क्या ज़माना आ गया है?
फ़िर वो भी मर जायेगा। मेरे बिना वो भी नहीं जी सकता।
फ़िर तो ठीक है, तुम दोनों मर जाओ। ये मुकम्मल इश्क़ की जगह कहीं और ही है, जाओ मरो अब!
मैनू तेरी नज़र लग जावै ना
अँखियाँ नू.. कौल सतावै ना।

नितेश वर्मा
#YuHiEkKhyaalSa #Niteshvermapoetry

अज़ब ही तस्वीर है ज़िंदगी की

अज़ब ही तस्वीर है ज़िंदगी की
थोड़ा मैं उदास भी
शक्ल मुझको मिली नहीं
पढ़ूँ क्या किसी की प्यास कहीं
बदन ख़ून से सराबोर है
पसीना मिट्टी में गुम हुआ
कौन साथ ताउम्र रहेगा यहाँ
मैं ख़ुद मुंतज़िर इसके लिए
भीगी पलकें ज़िंदा लाश होके
मैं फिर रहा हूँ क्यूं आख़िर
झूठलाकर मैं सब बकवास यहीं
कर रहा हूँ क्या तलाश सही।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो अज़ीब सा दिन उखड़ा हुआ सा

वो अज़ीब सा दिन उखड़ा हुआ सा
दिल में गहरी थी ख़ामोशियाँ
वक़्त किसी जंज़ीर की तरह
गले में हो जैसे लिपटी फ़ासियाँ
ये बदन अकड़न से चरमराती
धूप में बहलाती हो जैसे वादियाँ
इक उम्र का थका मैं मुसाफ़िर
और कहीं से झिलमिलाती वो
जैसे दीये से जगमगाती आशियाँ
इन तमाम उलझनों के बाद भी
उसे देखकर ख़ुश होना ही होता है
समझो जैसे हो किसी तेज़ सी
बारिश के बाद हसीं आसमानियाँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

कुछ कहो ना

कुछ कहो ना
कुछ ऐसा कि
मैं लिपट जाऊँ तुमसे
तुम थामों मुझे और
मैं फिसल जाऊँ ख़ुदसे
कुछ कहो ना

कोई किताब खोलकर
ख़्वाबों में मुझे पढ़ो
ख़यालों की चाँदनी रात में
मुझको लिबास कर ओढ़ो
ढ़ूंढों मुझे तुम सिराहने
ख़लाओं में कुछ बात करो
कुछ कहो ना

शायरी करो कभी
कभी रुठ जाओ मुझसे
जुल्फों को बिखराओ कभी
कभी ये सुर्ख़ नाज़ुक होंठ
रख जाओ मुझपर
मुझमें ही रहो ना
कुछ कहो ना

किसी महकी सुब्ह में मिलो
या उदास शाम में आओ
ख़त में मुझे मज़्मून करो
या स्याह में मुझको डुबाओ
किसी पते पर तुम आओ
या इस दिल में रह जाओ
कुछ कहो ना

सितारों से कुछ बात करो
रात कुछ देर छत पर रहो
हज़ारों बातों में पागल है
कुछ इस तरह से घायल है
थोड़ा हसीं मुझमें बहो ना
कुछ तो कहो ना
कुछ कहो ना

गर्म चाय की चुस्कियाँ
सर्दियों की रात में हम
एक लिहाफ़ में अकड़ते
मुहब्बत भरे दो जिस्म
रास्तों को जवां करो
मुझे थोड़ी सी जुबां दो
कुछ कहो ना

कुछ कहो ना
कुछ ऐसा कि
मैं लिपट जाऊँ तुमसे
तुम थामों मुझे और
मैं फिसल जाऊँ ख़ुदसे
कुछ कहो ना।

नितेश वर्मा और कुछ कहो ना।

#Niteshvermapoetry

अज़ब माहौल है अज़ब हैं ज़मानेवाले

अज़ब माहौल है अज़ब हैं ज़मानेवाले
क्यों करे हो-हल्ला ये ग़र्द मचानेवाले।

मुझमें रहते हैं इश्क़ के कारोबारी भी
ऐसे ही कइयों दिल-फ़ेंक दीवानेवाले।

ग़लत बात से कई बार घबराता हूँ मैं
अच्छी बात पर हैं कई चुप रहनेवाले।

सुब्ह सितारा रोशन था वो कहाँ गया
घनी रातों में लेकर दीये दिखानेवाले।

साँसों पर भी है तेरा नाम लिखा वर्मा
हर बार के तुम्हीं मुझसे मुकरनेवाले।

नितेश वर्मा

एक वो तस्वीर भी तुम्हारी होगी

एक वो तस्वीर भी तुम्हारी होगी
जो सीने में बरसों से क़ैद होगी
जिस पर कई ज़ख़्म पले होंगे
जो बगावत भी करती होगी
कई मरतबा मरहम लगे होंगे
उस जिस्म के सलवटों पर
कई छींटे ख़ून के पड़े होंगे
होंठ शुष्क अधमरे से होंगे
हवाएँ भी जिसे जलाती होगी
कोई आँच तन दहकाती होगी
दिल जिसका बिखरा सा होगा
जो ख़याल में यूंही पाग़ल होगी
हर रोज़ जो ख़ुदको ख़ुदसे ही
छिपाती होगी.. डराती भी होगी
जो मुझे कभी ना भूलाती होगी
एक वो तस्वीर भी तुम्हारी होगी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मैंने भी बहुत वक़्त गुजारें हैं रोने में

मैंने भी बहुत वक़्त गुजारें हैं रोने में
किस्मत मेरी मुझसे महरूम है क्यूं
मुझे ख़ुद ही लानत भेजती है अना
सदियों से है सितारा मेरा कोने में।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा..

वो मुस्कुरा कर तुमसे घंटों गले तो लगा रहता होगा.. तुम्हारे जिस्म से चिपककर सर्दियों की कई रात भी गुजारी होंगी.. पर तुम्हारे सीने से लगकर कभी खुल के नहीं रोया होगा.. तुम्हारी गोद में सिर रखकर कभी नहीं सोया होगा।
बातें तो तुमसे हज़ार की होंगी लेकिन दिल की धड़कनों को कभी सुनाया नहीं होगा.. वो तुम्हारी सारी tashan तो पूरी करता होगा.. लेकिन उसके अन्दर क्या चल रहा है वो यह चाहकर भी कभी तुम्हें नहीं बताया होगा।
उसकी आँखें हज़ार सवाल करती हैं कभी तुम उनमें उतर कर देखना, अग़र तुम्हें उनमें डूब ना जाने का ख़ौफ ना हो तब.. अग़र तुम्हें उन तक़लीफ़ों से कोई उबन ना हो तब.. वो फ़िर तुम्हें भी थाम लेगा.. उसे किसी अतीत से तुम ही बाहर ला सकती हो, मैं नहीं। मैं तो बस एक गुजरी हुई दास्तान हूँ.. और तुम माज़ी में उलझी हुई एक ख़ुदगंवार। मेरी मानो तो थोड़ा सफ़र करो और निकल चलो कहीं दूर इस मायाजाल से.. एक हक़ीकत का सितारा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा।

God bless you 😊
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

वो सुबह की.. झीनी ख़ुशबू सी है

वो सुबह की.. झीनी ख़ुशबू सी है
जो उतर जाती है मुझमें कभी
हर साँस के दरम्यान यकायक
और इक ज़िद से थामती है
अपनी नाज़ुक उंगलियों से
मेरी कलाई को और ख़ींचती है
एक डोर की तरह मुझे
बड़ी मासूमियत से अपनी ओर
और मैं ख़ीचा चला जाता हूँ
एक मुस्कुराहट के साथ
हौले-हौले से करीब उसके
फ़िर वो मुझमें घुल जाती है
और मैं जल जाता हूँ दीये सा
रोशनी बिखरती है क़ायनात में
और फुलझड़ी दिलों के अंदर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #HappyDiwali 😊

फ़िर मुश्किलात मुझे उसी दर पर ले आयी

फ़िर मुश्किलात मुझे उसी दर पर ले आयी
जहाँ से छूट चले थे, वहीं से ख़बर ले आयी।

बड़े जतन से संभाला था जो पत्थर हमने ही
वही मेरे सर पड़ी और मुँह ज़हर ले आयी।

उसकी नज़र और मुहब्बत की छाँव में रहे
एक सराब तिश्नगी की मुझे शहर ले आयी।

ये दिन भी याद रहेगा तमाम उम्र मुझे वर्मा
एक मुकाम की फ़साद सौ लहर ले आयी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

किसी ख़्वाब की सुब्ह है तू

किसी ख़्वाब की सुब्ह है तू
हर दरम्यान हर जगह है तू
इक नींद की आँच में हैं हम
करवटों में सुलग रही है तू

नज़र जब मुझमें ख़ामोश रही
बादलों में बारिश सी हो गयी
मैं लापता कमबख़्त बैठा रहा
भीगती सायों में दो ज़िस्में कहीं

जब हुआ ना तलब होश का
मैं बेवज़ह फ़िरता ख़ामोश सा
पते का कोई जिक्र ही नहीं
मंजिल से दूर मैं बेहोश सा

कुछ यूं मैं आके ख़ुदसे मिला
दिल को ही जैसे दिल से गिला
बात पूरी ना हुई, मैं बेचैन रहा
हवाओं में काग़ज जैसे ना हिला।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा..

इंसान को कभी इतना भी नहीं गिरना चाहिए कि वो अपने गमों के सौदे में अपनी अना बेच दे। किसी दर्द के इलाज़ में अपनी ग़ैरियत बेच दे और फ़िर भी जब कुछ हासिल ना कर पाए तो घुटन से मर जाएं। बुरा वक़्त इतना भी बुरा नहीं होता कि उससे मुँह फेर लिया जाए.. ये एक सबक होता है उन तमाम अनुभवों का जो हम इस ज़िंदगी में महसूस कर पाते हैं।
किसी से सिफ़ारिश लगवाना और उससे मुँह की खाना, उसकी तमाम बेफ़िजूलियत को सुनना, उसके हाँ में हाँ मिलाना। हर बार ख़ुद से ही हारना.. ख़ुदके ही नज़रों में हज़ारों बार गिरना-उठना।
दु:ख के बोझ से दुहरा होना, मंदिरों में भटकना और फ़िर नाकाम होकर शाम को घर लौट आना। क्या ख़ाक ज़िंदगी है जो हर दफ़ा मारने और गिराने में यक़ीन रखती है। एक सबक सिखाने के लिए तिल-तिल किसी ज्वलंत आग में जलाती रहती है। मैं हैरान हूँ ख़ुदसे और ख़ुदा के बनाएँ हुए इस तिलिस्म से.. इस बार तो कसम से।

किसी पर यक़ीन कर चुप बैठ जाना सही नहीं
ये ज़िंदगी कुछ और है ज़ल्द समझ आती नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

सर्द चाँदनी रात हवाओं के बीच

सर्द चाँदनी रात हवाओं के बीच
वो इक हसीन सितारा बनकर
तुम मेरे आंगन में
जो उतर जाती हो आहिस्ता
मैं ख़ुदको लिहाफ़ में लपेटकर
अपने पंसदीदा दरीचे पर बैठ
खुली आँखों से एक ख़याल बुनता हूँ
जिसमें दो जवां जिस्म
एक साये में लिपटकर
खंगालते है कंगाल होकर ख़ुदमें
मुहब्बत का इक हसीन सितारा।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा - बारिश के ठीक बाद

तुमने बारिश के ठीक बाद क्या कभी उसे देखा है? जब वो झटककर अपनी जुल्फों को हवा में खोल देती हैं और घंटों वो हवाओं से बातें करती हैं। जब उसकी लटें जब उसके कंधों से होकर उसमें एक मासूम सी सरसराहट पैदा करती है तब क्या तुमने उसे देखा है? बारिश में भीगती वो जितनी हसीन लगती है उससे भी ज्यादा खूबसूरत वो ठीक उसके बाद लगती है। जब वो एक बने-बनाए बंधनों से मुक्त होकर धुल जाती है तब वो किसी और ही जहां की परी लगती है।
मैं नहीं जानता वो क्यूं ख़ुदको इन बंधनों से हमेशा से रिहा नहीं करना चाहती। वो क्यूं नहीं किसी बारिश के साथ एकदम से बदलना चाहती। वो क्यूं हर बार घुट-घुटकर फ़िर से उसी जहान में लौट जाना चाहती है जहाँ फ़िर से उसे अपने पाँवों में बेड़ियाँ पहननी होती है। मैं कहाँ कुछ जानता हूँ? मुझे शायद तमीज़ नहीं लेकिन अग़र मैं बदतमीज़ ही हूँ तो मुझे ये फ़र्क़ हमेशा चैन से क्यूं नहीं जीने देती?
क्या हावी हो जाता है उसपर या मुझपर मुझे इसका पता नहीं? क्या मैल छिपा है उसमें या मुझमें मुझे इसका भी कोई पता नहीं। मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ कि वो किसी बारिश के ठीक बाद एक मुहब्बत हो जाती है और मैं उस मुहब्बत में डूब मरता हूँ ख़ुदको सराबोर करके।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

Tuesday, 18 October 2016

कानों में ज़हर घुलता है आधा सुनने के बाद

कानों में ज़हर घुलता है आधा सुनने के बाद
एक शख़्स पागल है कबसे बिखरने के बाद।

वही हाल है जो बयां करने से घबराता हूँ मैं
हर बार ख़्याल के पास आ मुकरने के बाद।

जिस्म-ओ-ज़हन से थका हुआ मुसाफ़िर मैं
इंकलाब लेता हूँ घुट-घुटकर मरने के बाद।

जब बुझाया था मैंने चिराग़ कोई हवा न थी
फ़िरसे जला बैठा हूँ ख़ुदके गुजरने के बाद।

कोई काम नहीं आता है इस दुनिया में वर्मा
समझ आता है सब हालात सुधरने के बाद।

नितेश वर्मा

के फिर लौटकर आऊँ वो सहर नहीं हूँ मैं

के फिर लौटकर आऊँ वो सहर नहीं हूँ मैं
सब्ज़ आँखों से भी छूटूँ तो ज़हर नहीं हूँ मैं।

क्यूं हर बार मैं ही हार जाता हूँ इस ज़ंग में
इंसान हूँ, कोई ख़ुदा-ओ-रहबर नहीं हूँ मैं।

माना तुम्हारे सवालों का जवाब नहीं हुआ
कुछ कहूं भी ना इतना कमतर नहीं हूँ मैं।

हालांकि! ग़लतियाँ तमाम मेरी ही रही थी
फ़िर भी तुम फ़ेंक दो वो पत्थर नहीं हूँ मैं।

दूर बस्तियों में इक चिंगारी जलती है अब
जबसे माना है सबने के कहर नहीं हूँ मैं।

ज़माना फ़िर से गले लगाना आया था वर्मा
जो बाद यकीन हुआ के बद्तर नहीं हूँ मैं।

नितेश वर्मा

क्या मांगता है रब से कोई ये वो शख़्स ही जाने

क्या मांगता है रब से कोई ये वो शख़्स ही जाने
जिसने मुहब्बत करके कई रात तन्हा गुजारी है

नितेश वर्मा

तमाम इतिहास पन्नों में सिमटती है

तमाम इतिहास पन्नों में सिमटती है
क़िताब जब भी उठाईं बिलखती है।

मातम होता है हर रोज़ गुजरने पर
वो वक्त जभ्भी यकायक खुलती है।

क्या यही बात थी कि मैं नहीं हूँ मैं
मैं उलझता हूँ जो बातें सुलझती है।

हर दौर एक सवाली गुजरता रहा
पत्थर फिर बेहिसाब ही गिरती है।

इल्म भी तो वज़ूद में नहीं था वर्मा
हकदारी ही अब आँखें मलती है।

नितेश वर्मा

मैं हूँ कहाँ, मुझे ये ख़बर नहीं

मैं हूँ कहाँ, मुझे ये ख़बर नहीं
कोई दवा भी मुझे असर नहीं।

मैं स्याह रात हूँ वो काली घटा
ये बारिश है कोई कहर नहीं।

जबतक गुमान है मरना होगा
क़त्ल होगा भी तो मगर नहीं।

वो शाम प्याला होंठों पर लेके
कहेगी पीलो ये है ज़हर नहीं।

शायद मैं ही ग़लत होऊँ वर्मा
ये बदला हुआ मेरा शह्र नहीं।

नितेश वर्मा

के अब औ' इंतज़ार करने में दिल बैठता है

के अब औ' इंतज़ार करने में दिल बैठता है
कोई खोया हुआ शख़्स जब मिल बैठता है।

कई धूप कई बारिश, कइयों तूफ़ाँ से गुजरे
ये हाल आज अज़ीब है जुबाँ हिल बैठता है।

मातम जैसे सारे कमरे में मूसल्लत हुई हो
वो किरदार जब क़िस्से से निकल बैठता है।

बहुत ग़लत होता रहा था साथ मेरे ही वर्मा
बयानबाज़ी भी अक्सर जो बदल बैठता है।

नितेश वर्मा

Wednesday, 12 October 2016

बारिश की बूंदों का उतरना

बारिश की बूंदों का उतरना
चेहरों के आसमान पर
दिल की हर ख़्वाहिशों में
हैं कई सवालें ज़ुबान पर
मरना भी ना था हमें इश्क़ में
तड़पना ना था इश्क़ में
इस तरह उसका नशा था
जैसे मैं था किसी गुमान पर।

वो पाग़ल नहीं समझती है
तड़प दर्द भरे नग़्मात का
वो मुझसे ही लड़ती है
गुस्सा करके ज़ज्बात का
इस तरह नहीं होना था
इश्क़ में किसी हक़दार का
मुझपे इक धुन सी सवार थी
मुहब्बत भरे लम्हात का।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

बुरे लोगों के बीच है, दो हसीन जान

बुरे लोगों के बीच है, दो हसीन जान
मुहब्बत की आग में वो हसीन जान।

हर ग़म को सहते हैं लिखा मानकर
हर सुब्ह से अंज़ान लो हसीन जान।

कुछ ख़्याल दिल में दफ़्न हो गये हैं
कुछ ज़िन्दा है तो उड़ो हसीन जान।

ऐसे ना पाग़ल हो जाओ तुम भी रब
कुछ तुम्हीं ठीक करो हसीन जान।

सुनने में ना आया, जो चुप था वर्मा
ये नसीब है, यहीं मरो हसीन जान।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा- सौदा-ए-समझदारी

और बता लड़का पसंद आया?
किसे..? कौन सा लड़का..? पाग़ल हो गई है क्या..?
अब ज्यादा मत बन, तेरी ही बात कर रही हूँ। सुना है मैंने.. सुबह तुझे देखने के लिए कुछ लोग आए थे।
उम्म्म्म्म...
क्या पसंद आयेगा और वैसे भी मैं नहीं गई थी पसंद करने.. वो आया था मुझे देखने-छांटने।
अच्छा। फिर?
बोला उन लोगों ने लड़की पसंद है।
वाह! चल सबको बताती हूँ और ये बता पार्टी के लिए सबको कब बुलाऊँ?
मत बुला यार! और जो इतना चहक रही है ना बस एक बार लड़के को देख लोगी तो मातम मनाती फिरोगी।
अच्छा, ऐसा क्या है उसमें?
अबे यार! एक तो इतना मोटा है कि कोई बहस ही ना की जा सके.. ऊपर से इतना काला है कि लगता है किसी ने पूरे शरीर पर कालिख़ पुत दी हो.. उसे देखकर बड़ा जी घबराता है यार!
तो मना क्यूं नहीं कर दिया तुमने?
अब मैं कैसे मना करूँ, उसे पापा ने पसंद किया है मेरे लिए। सुनने में आया है काफ़ी दौलतमंद है। अब किसी ना किसी से तो शादी करनी ही है ना तो इससे ही कर लेती हूँ, घरवाले भी ख़ुश हो जायेंगे और ये ज़िन्दगी से पैसों की किल्लत भी हट जायेगी।
हुम्म्म! मतलब तू शादी नहीं सौदा कर रही है। ठीक ही किया जो किसी को नहीं बताया तुमने और वैसे भी तुम्हारे इस सौदे में आकर हमलोग क्या करेंगे। मेरी तरफ़ से बेफ़िक्र रह मैं ना तो किसी को कुछ बताऊंगी और ना ही इस सौदे में कोई गवाह बनने आऊंगी। चल बाय! रखती हूँ।
अरे सुन तो... स..।
और सुन.. रखा नहीं है अब तक.. जो तू इतनी समझदार बनकर सबको अपना चेहरा दिखा रही है ना.. ये लोग जो शादी से पहले कहते है ना कि बेटी पराई धन होती है वो बाद में ये साबित भी करके दिखा देते है। जब कभी लड़के या उसके परिवार वालों से अनबन हुई ना तो यही लोग तुझे कोसेंगे.. समझी.. और ताना देंगे कि तेरी ही मर्जी से हुई थी शादी। और अपना पल्ला झाड़ते चलेंगे.. बड़ी आई बाप की लाड़ली।
चल अब रख दे, मूड ठीक होगा तो फिर बात होगी। 😊

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

हमें गुमाँ होता है ख़ुद के होने पर

हमें गुमाँ होता है ख़ुद के होने पर
हम ख़ुद पागल है इस बेहूदगी पर
हर रोज़ वही मसलेहत माज़ी की
हैं फ़िर बेज़ुबाँ इस जद्दोजहद पर
के आके थाम लेती हैं बाहें उसकी
बदहाली जो होती है यूं बेवक्त पर
आसमां जब भी खाली लगता है ये
घटा कहीं और होती है तड़प पर
अब ना होना या होना मतलब नहीं
बेमतलब की सब बातें हैं ख़ुद पर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

जब बारिश नहीं होती है किसी मौसम में

जब बारिश नहीं होती है किसी मौसम में
और सूरज बादलों के बीच छिपा होता है
पेड़ों से पत्ते जब अलग होते रहते हैं
धूल हवाओं में जब लहरें पैदा करती हैं
सकुचाया मन जब विचलित हो उठता है
युद्ध का बिगुल जब बजाया जाता है
मासूम से गाँव के कुछ लोग हारे मन से
हल लेकर खेतों की ओर भागने लगते है
और जब फसल लेकर घर लौटते हैं
तबतक उनका घर ढ़ेर हो चुका होता है
वो उन राखों के बीच तलाशते रहते है
बदले की भावना जो शांत पड़ गई होती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा- सब मिला दिलनशीं, एक तू ही नहीं ..

आज भी जब कभी पीछे पलटकर देखता हूँ मुहब्बत इक प्यास में तड़पती दिखाई देती है, दिल को बहलाता हुआ एक आईना है कमरे में.. जिसके ज़र्रे-ज़र्रे में बस तुम बसी हुई हो। इस शहर के आलीशान से बंगलो के बीच एक वो बंगला भी है.. जो बादलों को तो बेशक छू लिया करता है लेकिन उन बादलों से कभी कोई दरख़्वास्त नहीं करता कि वो कभी मुझपर यकायक बरस पड़े। बाहर एक लॅान भी बनवाया है जहाँ शहर की कोई भूली-बिसरी आवाज़ नहीं आती और ना ही कोई निगाहें उठकर वहाँ आती हैं.. मैं घंटों चुपचाप वहाँ बिलखकर रो लेता हूँ।
और अब इस रोज़ की भागादौड़ की बात करे तो मुहब्बत ख़ुद अपना गला घोंटकर बैठ जाएं। सुब्ह से शाम तक कंस्ट्रक्शन के शोर में मरो और फ़िर रात को तुम्हारी यादों में रतजगा करो। हाल ये है कि इस ज़िंदगी के दरम्यान कइयों दर्द मिले.. कइयों राहतें.. कई बार उफ़्फ़! भी किया तो कई बार हाय! कहकर ख़ामोशी से सब सह गया।
अलमिया ये है कि जिस्म अब ऊबन बर्दाश्त नहीं करती और ख़याल ये है कि फ़िर से सब छोड़कर वापस लौट जाना कोई समझदारी नहीं है। इंसान जब ज्यादा बुद्धिजीवी हो जाए तो उसके साथ ही कई परेशानी शुरु हो जाती है। वो हर बात का विरोध करता है, उसे परखता है और फ़िर हारकर वही करता है जो उसे उसके दिमाग़ ने इज़ाजत दिया होता है।
अब देखो ना.. बातों-बातों में बताना भूल ही गया वो फ़िल्म तुम्हें याद होगी जान-ए-मन.. सौ दर्द हैं.. सौ राहतें.. जिसमें गाना था। तुम इस गाने को कैसे भूल सकती हो मेरी एक इयरफ़ोन छीनकर ये गाना सुना करती थी और हर बार इस वाली लाईन पर आकर-
सब मिला दिलनशीं, एक तू ही नहीं..
मुझसे ही छिपकर मुझे एक भर देख लिया करती थी। तुम्हारी चोरी हर बार पकड़ी जाती थी मग़र मुझमें वो हिम्मत बंधती ही नहीं थी कि मैं कभी कुछ कह सकूँ। पहले ये राग़ अलापता था-
शहर की सड़को पे, लावारिस उड़ता हुआ..
और आज तुम्हारी याद हर वक़्त बेसबब ये कहलवाती है -
सब मिला दिलनशीं, एक तू ही नहीं..
ये मुहब्बत भी बहुत बदमिज़ाज चीज़ है एक शर्त लेकर चलती है और जब रूठ जाती है तो सौ बहानों में सिमट जाती हैं। ख़ैर! अब जहाँ भी हो तुम अपने इयरफ़ोन से ये गाना सुनो इस बार और भी ज्यादा अच्छा लगेगा सुनकर.. दो धड़कते दिल जब एक ही गाना एक साथ जब दो अलग-अलग जगहों पर बैठकर सुन रहे होंगे। 😊

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

सुबह एक रोशनी आती है कमरे में

सुबह एक रोशनी आती है कमरे में
पुकार कर हर जिंदा ख़्वाहिशों को
पलती रहती है नाज़ुकियों के बीच
कश्मकश तुम्हारे होने ना होने की
दस्तक देती हैं तुम्हारी लिखीं ख़तें
हर रोज़ दरवाज़े के नीचे से मुझमें
मेरी ऊंघ में हरकत होती है अज़ीब
चिट्ठियाँ जो पढ़ने बैठ जाता हूँ मैं
मैं हर सलाम में तुम्हें देखता हूँ बस
और तुम गुनगुना जाती हो कमरे में।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

जलती चिंगारी में एक लौ जला डालो

जलती चिंगारी में एक लौ जला डालो
हमें हमारे जिस्म से अब मिला डालो।

कबसे एकसुरी ज़िद पे बैठे हुए हैं वो
उन्हें भी उनके हक का दिला डालो।

याद तो हमें बरसों रही उनकी इश्क़
अब इसपर तुम भी कुछ सुना डालो।

लेने लगी हैं ये करवटें सिसकियाँ भी
मरहमी लबों जामे अब पिला डालो।

सोया हुआ था बेख़ौफ शहर में वर्मा
कोई पत्थर फेंको, मुझे हिला डालो।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

WAR versus Humanity!

War is the not solution anymore and war is not what we want. Actually we wants peace but sometimes we stood up against humanity and talking like a rubbish. I know, on this statement someone/everyone arises question to my patriotism.. but it's okay!
I can't support humane killing in anyways. I feel for my country and their soldiers. I think, we should to support humanity and stopped humane killings.
We should to fighting against terrorism not for morality and humanity. Humanity doesn't mean to protect yourself/ourselves. Please pay attention and support in making India not to destroying anyone.

PS - WAR versus Humanity!

हमीं को सब नज़्रे दिखाएँ हुए है

हमीं को सब नज़्रे दिखाएँ हुए है
हमीं है जो बारहां मिटाएँ हुए है।

हमीं करते थे इश्क़े-कारोबार'
हमीं है जो नज़रे छिपाएँ हुए है।

हमीं घायल होते रहे पत्थरों से
हमीं है जो दीवार बनाएँ हुए है।

हमीं रोकते थे ख़ुदको बारहां
हमीं है जो दिल लगाएँ हुए है।

हमीं ने रिश्ता तोड़ा था उनसे
हमीं है जो सीने दबाएँ हुए है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इस बात पर क्या कहे हम आख़िर

इस बात पर क्या कहे हम आख़िर
लब परेशान, आँखें है नम आख़िर।

हम अपने हवाले से क्या बोले अब
जो सुनोगे, कहोगे है कम आख़िर।

पत्ता-पत्ता टूटकर बिखर गया तेरा
तू दरख़्त था यही है वहम आख़िर।

अब तक प्यास से गला सूखता था
ऐ! बारिश अब तो तू थम आख़िर।

हमीं घायल क्यूं हैं, उनके तीरों से
बंद करो इंसानों ये रहम आख़िर।

मिटता है जब ख़ुद का वुज़ूद वर्मा
ख़ुदका होना भी है अहम आख़िर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

जब तमाम उम्मीदें बैठ जाती हैं

जब तमाम उम्मीदें बैठ जाती हैं
साँसें तब कहाँ मुझे आ पाती हैं।

जाँ हलक में अटकने लगी अब
ज़ुबाँ ये कहाँ कुछ समझाती हैं।

लोग तो मकानों में झांकते नहीं
और ग़रीबी बस्तियाँ जलाती हैं।

इस दौर में परेशाँ है हर नाविक
लहरें कहाँ चुप होकर आती हैं।

हमीं इस जाँ के बख़ील है वर्मा
वो कहाँ साँसें हमसे चुराती हैं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ये ख़ुदबयानी ही जंजाल बन जाता है

ये ख़ुदबयानी ही जंजाल बन जाता है
मुसाफ़िर शह्र में ये हाल बन जाता है।

मकाँ शीशों के और अंदर पत्थर भी
यही तो अकसर बवाल बन जाता है।

फूँक कर पाँव रखते है हम भी सनम
और यही सबका सवाल बन जाता है।

हैसियत ऊँची उठने लगी दीवारों की
हमसाये में होना मलाल बन जाता है।

हमारी दरख़्तें रोती हैं रात-भर वर्मा
औ' सुब्ह हसीनोंगुलाल बन जाता है।

नितेश वर्मा

मुझे झूठा बताकर कहीं को रहा

मुझे झूठा बताकर कहीं को रहा
दिनों-रातों सुकूँ भी नहीं को रहा।

हमारे ही जिस्म पर.. कई दाग़ थे
मुकरना भी इसी से हमीं को रहा।

क़िताबों में हुआ था ज़िक्रे-आपका
जिसे कहना नहीं था यहीं को रहा।

मिले थे जो किसी मोड़ पर वो ज़ुबाँ
बहुत रोये मग़र शब वहीं को रहा।

सुकूने-क़ैद में थे मुसाफ़िर सभी
रिहाई भी मुश्किल उन्हीं को रहा।

ख़ुदा ही जानता है जख़्मे-हाल अब
शिकायत भी किया तो जमीं को रहा।

नितेश वर्मा

हाँ तो! झुंझलाके मैंने दीवार फोड़ी भी है

हाँ तो! झुंझलाके मैंने दीवार फोड़ी भी है
फ़िर ताउम्र रो-रोकर शक्लें जोड़ी भी है।

किसी उम्मीद में बैठे मुसाफ़िर थे हम भी
उसने हर मर्तबा अपनी बात तोड़ी भी है।

हम ही माँगते थे बारहां कुछ मोहलत भी
हम ही है जो हर राब्ता अब छोड़ी भी है।

हालात के आगे मजबूर है इतने क्या कहे
मंजिल पे आके ख़ुद गला ममोड़ी भी है।

सुनते आये हैं क़िस्से मददगारी के बहुत
परेशां होके हमने हर चाल मोड़ी भी है।

मैंने हर आस को बांधा है ख़ुदसे ही वर्मा
किसी से नहीं गिला मुझको थोड़ी भी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अब रोशनी हमारे आँगन में फैलने लगी है

अब रोशनी हमारे आँगन में फैलने लगी है
ख़ूँ-ख़राबों के बाद शुरू हुई ये दिल्लगी है।

कितना मातम मनाओगे ख़ुदके गुजरने पे
ये क़िस्सा तमाम भी बस इक ख़ुदकुशी है।

इश्क़ के वास्ते ना कभी रस्ते पर आये थे
मज़ूरी ज़िंदगी की भी मुकम्मल शायरी है।

तमाम बोझ अपने कंधों पर रखकर चलो
अज़ीब कुछ नहीं है समझो सब बेख़ुदी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

कहीं सो रहा था कइयों उफ़ान लेकर

कहीं सो रहा था कइयों उफ़ान लेकर
एक जिस्म था मेरे ही जिस्म के अंदर
औ' शोर कर रहे थे तुम इस दरम्यान
ख़यालों की कश्ती में होकर समंदर
जब यूं टूट पड़ने लगा था पहाड़ कोई
जब टपक रही थी मेरी ही ख़ून मुझपर
जब गुजांइश थी ही नहीं समझौते की
और युद्ध जब गुजर चुका था कहीं पर
लाश समेट रहे थे कई घरों के लोग
और हज़ारों आँखें रो रही थी इसपर
तब सियासत की लिबास ओढ़े मैं ही
मर था उन चीख़ों में बेहयां सा होकर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ज़िंदगी किसी सर्द से पड़े आशियाने में क़ैद थी

ज़िंदगी किसी सर्द से पड़े आशियाने में क़ैद थी
जब दो कनीय अभियांत्रिकी छत घूर रहे थे
ख़यालों की ओस भरी बूंदें जब टपक रही थी
तब लानत भेजते कुछेक ख़्वाहिशें सुस्ता रहे थे
उस AC के बंद कमरे में धीमी रोशनी के बीच
TV जब बहस में गुमशुदा होती जा रही थी
दरवाज़े पर मजदूरों के बर्तन खटखटा रहे थे
चीख़ती महिलाएँ ताने दे रही थी
कोस रही थी किस्मत और लाचारी को
बच्चे भूख से बिलखते आँधियों के धूल चाट रहे थे
मध्यम चाँद जब शीतल होकर रोशनी फैला रही थी
बारिश के फुहारों के बीच जब अचानक ख़िड़की खुली
तो दोनों ने सरसरी तरीके से ग़ौर फ़रमाया
मजदूर बारिशों-तूफ़ाँ से जद्दोज़हद करके
बचा रहा था कि उसका छप्पर सिर पर कुछ देर और पड़ा रहे
के ये रात गुजरने में अभी बहुत रात बाक़ी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

फिर बहुत देर तक आज उजाला होगा

फिर बहुत देर तक आज उजाला होगा
ज़िक्र होगा उनका तो संग प्याला होगा।

मोहब्बत का उड़ाते हो मज़ाक तुम भी
जिस्म गोरी हो, मग़र दिल काला होगा।

किसी आलीशान से शहर में क़ैद हूँ मैं
जल्द ही सुना है कि घर निकाला होगा।

जब भी ख़्वाब मुहाज़िर होकर भागे थे
समझ गया था मैं जाँ भी दीवाला होगा।

बद्ज़ुबानी में उम्र गुजारी तमाम वर्मा
बद्ऐहतियाती मेरे मुँह में छाला होगा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ये कौन यूं आकर इन ख़ामोशियों में लिपट जाता है

ये कौन यूं आकर इन ख़ामोशियों में लिपट जाता है
ये कौन-सा शक्ल है, जिसे दिल बारहां रट जाता है।

ख़ूँ-ख़राबों से भी मसाईल हल होते हैं क्या बेवकूफ़
ये क्या है तुझमें जो हर-बार यहाँ मर मिट जाता है।

रिहा करके सोया था उस परिंदों को मैं रात भर जो
सुबह फ़िर वो परिंदा आके मुझसे ही सट जाता है।

ज़िंदगी से परेशां होकर अब क्या ख़ुदकुशी करना
माना दु:ख है, दर्द है, लेकिन सब तो कट जाता है।

बचपन से बुढ़ापे तक के सफ़र में मैंने देखा है जो
सच मानिये तो सब कुछ आहिस्ता निपट जाता है।

जब भी उसके पत्थर के बदले पत्थर ढ़ूँढी थी वर्मा
एक है यही इंसानियत जो सामने आ डट जाता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा - मन-मायल

चीख़ो मत।
चीख़ूँगी। क्या कर लेंगे आप मेरा? मारेंगे? तो मारिये, लेकिन मैं चुप नहीं रहूँगी।
मैं तुम्हें कैसे मार सकता हूँ। ये तुम भी कैसी बातें कर रही हो?
क्यूं इतनी बार से क्या किया है आपने। जब मैं अपना सबकुछ छोड़कर रात के गहरे सन्नाटे में भागते हुये आपके पास.. आपके दरवाज़े पर आयीं थी.. आपने तब अपना दरवाज़ा ना खोलकर मुझे मारा था। जब मैं बाहर उस दहलीज़ पर घंटों बैठकर रोई थीं और आपने मुड़कर एक बार भी मेरा हाल ना जानना चाहा.. तब.. तब आपने मुझे मारा था। जब मेरी मंगनी तय हो रही थी और मैं किसी अँधेरे कमरे में बैठकर बिलख-बिलखकर रो रही थी तब मुझे देखकर मुझसे निगाहें फ़ेरकर आप चले गये थे.. तब आपने मुझे मारा था। मेरी रुख़सती के दिन जब आपने शह्र छोड़कर मुझे और भी तन्हा कर दिया था तब आपने मारा था मुझे। जब बिस्तर पर मेरा जिस्म किसी और के हवाले था और रुह आप में खोया हुआ था तब.. तब आपने मुझे मारा था।
मुझे चोट नहीं लगती, मेरा जिस्म कहीं लहूलुहान नहीं होता लेकिन मैं अंदर ही अंदर से मरती आ रही हूँ। मैंने शायद इक ज़ुर्म किया था मुहब्बत करके.. और मैं उसमें ही तिल-तिल करके मर रही हूँ।
मेरी एक दरख़्वास्त है कमसेकम मुझे इस बार चैन से मरने दीजिए। बेचैनी से मेरी जान मत निकालिये। अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं रह गयी है कि मैं आपसे कुछ कह सकूँ या आपकी मार को सह सकूँ। ख़ुदा के लिये अब मुझे बख़्श दीजिये।
क्या मैं इतना बुरा हूँ?
हाँ! बहुत बुरे है आप।
बुरा ही सही, लेकिन अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा। इन हज़ारों ज़ुल्मों के बीच तुम ये भी कान खोलकर सुन लो- अब तुम मेरे ही पास रहोगी और मेरे कहने पर ही कहीं जाओगी। और तो और तुमने और कुछ कहा ना तो मैं तुमसे ज़बरदस्ती निक़ाह भी करूँगा। तुम मुझसे बच नहीं सकती। मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता।
आप बहुत बुरे है। मैं आपसे तंग आ गयीं हूँ ख़ुदा करे कि.. कि आपको मौत आ जाये।
मैं मर जाऊँगा तो तुम्हें ख़ुशी मिल जायेगी?
हाँ! बहुत ख़ुशी मिल जायेगी।

छोटे से दिल नूं समझावा की
तेरे नाल क्यूं लाइय्या अँखियाँ..

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मुझे लहूलुहान कफ़न में लिपटा देखकर

मुझे लहूलुहान कफ़न में लिपटा देखकर
बिलख रही थी इक मासूम गाँव
जिसके घर के कई चूल्हे बुझे रह गये थे
उस रात जब गाँव के खेलते हुए बच्चे
बिना किसी हो-हल्ला के भूखे सो गये
चाँदनी नहीं ठहरीं थी किसी आंगन में
हवाएँ बेरुख़ होकर कहीं ठहर गई थी
जब बहता ख़ून मेरा बर्फ में जमकर
पिघलने लगा था सबके सीनों में
और तड़पते हुये तमाम बोझिल मन से
लोग शहरों के उतर आये थे रस्तों पर
मेरे हाथ से तब छूटता तिरंगा थम गया
और उसे अपने सीने में अंदर तक
गाड़कर मैं मुस्कुराता शहीद हो गया
मैंने ख़ुद ही ऐसी शहादत चाही थी
ये इल्तिज़ा है.. कफ़न के ऊपर लिख देना
मैं जीता हूँ देश पर मरने के ख़ातिर
मेरा नाम सिपाही है.. मेरा नाम सिपाही है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अभी भी हूँ.. वही मैं बिखरने वाला

अभी भी हूँ.. वही मैं बिखरने वाला
जहाँ कल तलक था मैं सुधरने वाला।

मुझे जाने ख़बर होती कि ना होती
ख़ुदा तू ही बता सब विचरने वाला।

मिरी आँखें जवां थी.. तब गुमाँ थी वो
मुझे मारा कि मैं ही था ठहरने वाला।

शहर भर में.. सुनाया था किसी ने ये
कि वो अब है मुझी में निखरने वाला।

किसी से ज़िंदगी भर ये गिला लिपटा
वही है.. अब मुझी में गुजरने वाला।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

प्रतिक्रियाओं के विकृत मानसिकता भरे दौर में

प्रतिक्रियाओं के विकृत मानसिकता भरे दौर में
विभिन्न प्रतिस्पर्धा में मनुष्यों का होता आगमन
उन विचारधाराओं से ओत-प्रोत होकर
असंयमित प्रकार से खंगालता है इंसानियत
अब उग़ता जाता है इसपर चंचल स्वभाव मेरा
और झुंझलाता है स्वयं के इस दुर्व्यवहार पर
सामाजिक बुनियादी ढांचा नीरस प्रतीत होता है
और सुबह से काम कर घर लौटता मजदूर
एक नितांत सरोवर के समीप बैठकर
पत्थर फ़ेंकता रहता है अपनी इच्छाओं के
सरोवर में बैठे हुये उन हंसो के जोड़ो पर
स्वयं को वृक्ष के डाल पर बैठे हुये कौओं से
एक चिढ़न से पलता हुआ बगुला बताकर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

थकन जब ओढ़कर शाम मुझमें ढ़लती रही

थकन जब ओढ़कर शाम मुझमें ढ़लती रही
एक शक्ल धुंधली सी करवट ले जलती रही।

जब मातम मेरे दहलीज़ पर आकर बैठ गई
मयस्सर सारी चीज़ें फ़िर बहुत ख़लती रही।

हमने तो आँखों में बस मुहब्बत सजायी थी
कौन-सी आँखें थी जो मुझमें पिघलती रही।

हौसला बहुत देर बाद आया हमें मरने का
वो एक सज़ा थी जो हर बार बदलती रही।

फ़ख्र ना हुआ उसके दास्तान पे मुझे वर्मा
मुतासिर हो गये यही किरदारे ग़लती रही।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो हुस्न पाकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया

वो हुस्न पाकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया
रात बिताकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया।

मुझसे मज़ीद बहस सबकी होती रही
मैं तंग आकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया।

तमाम शक्ल पुराने थे जाने-पहचाने से
करीब जाकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया।

बद्तर हालत थी, आँखें थी खोई कहीं
सब दिखाकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया।

इश्क़ में तौहमते मिलती हैं हज़ारों ही
पीठ बचाकर फ़िर ख़ुदमें लौट आया।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

सुर्ख़ मखमली होंठ, गुलाबी होते हुये गाल

सुर्ख़ मखमली होंठ, गुलाबी होते हुये गाल
कानों से लिपटे हुये झुमके की बालियाँ
और तुम्हारा दायें हाथ से
बिखरी जुल्फों को कान के पीछे ले जाना
एक चेहरा जो तुममें खोया रहा था
वो आज तलक रिहा नहीं हुआ है
उस कैंटीन की शामे-मुलाक़ात से
बंद है ख़याल दिल के किसी कोने में
एक हसीन सा कमरा बनकर
जिसकी दीवार की हर ईंट में
बस तुम ही तामीर हुयी हो
जहाँ सदियों से तुम्हारी इक तस्वीर
मुस्कुराएँ जा रही है मुझे देखकर
बिन कुछ कहे.. बड़ी ख़ामोशी से।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

इस दुनिया की सबसे खूबसूरत बात क्या है जानती हो?
नहीं! तुम बताओ। मुझे तो बस इतना ही पता है कि दुनिया बहुत ज़ालिम हैं।
अरे यार! ज़ालिम होगी.. लेकिन किसी और के लिये।
हाँ! तुम बताओ। कौन सी बात सबसे खूबसूरत है इस दुनिया की?
यही कि इस दुनिया में एक साथ कई मुहब्बत अलग-अलग जगह पनपती रहती हैं। एक तरफ़ा या दोनों तरफ़ बराबर की आग लगाये हुये।
और हमारा?
ये तो तुम बताओ?
उम्म्म! पहले चाय तो पिलाओ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

हिंदी दिवस Hindi Diwas By Nitesh Verma Poetry

#हिंदीदिवस

अग़र वीराने-ख़्वाब से रिहा हो चुके हैं तो हिंदी दिवस की ओर ग़ौर फ़रमा ले। ये बाहें खोलें आपका इंतज़ार कर रही है। भावुकता से उठाने या थामने की ज़रूरत नहीं है और ना ही अश्रुपूर्ण दो-चार कविताओं को परोसने की। हिंदी को आपसे बस मुहब्बत की जरूरत है वो थोड़ी सी भी हो तो चलेगी।
हिंदी में अँग्रेज़ी का प्रयोग हिंदी के ठेकेदारों को ग़लत लग सकता है लेकिन आप अग़र इसके साथ Comfortable है तो ज़रूर ऐसा कीजिये। सबकुछ सबके मुताबिक़ नहीं होता। हिंदी अपनाइये बग़ैर शर्त या किसी शर्त के वो आप पर निर्भर करता है। सवाल उठाने वाले तो कई दिग़ज्जों पर सवाल उठा चुके हैं। दुष्यंत कुमार जी के शे'र-
तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।
पर भी सवाल उठाया गया है कि रेल हिंदी या उर्दू नहीं बल्कि अँग्रेज़ी का शब्द है उन्हें ऐसा शे'र नहीं कहना चाहिये था।
फ़ैज अहमद फ़ैज साहब ने "हिंदी में अँग्रेज़ी का आगमन"- पर बहुत ही बेहतरीन तरीके से एक बात समझायी है।
शब्द अँग्रेज़ी का है Bore यानी कि उबन। इस Bore से हिंदी के ठेकेदारों को कई परेशानी रही है। मग़र आज देखिये हर कोई अपने लिखावट में बोरियत शब्द का इस्तेमाल नि:संकोच करता है उसे उर्दू का बताकर।
नयी शब्दों का आगमन भी ज़रूरी है। मग़र हिंदी की बनी-बनायी दुनिया इसे रत्तीभर भी अमल में नहीं लेती है। सोचिये अग़र मशहूर गीतकार शैलेंद्र जी- ज़िंदगी से ज़िंदगानी का ईज़ाद ना करते तो क्या आज के कई शे'र इतने खूबसूरत हो सकते थे?
हिंदी अपनाइये, हिंदी बढ़ाइये, नये शब्द बनते हैं तो उन्हें सराहिये। ज़्यादा और कुछ लिखने से अच्छा है एक कविता पढ़ लीजिये शायद विचार हमसाथ हो जाये।

विश्व इतिहास में जब एक पुस्तक धाराशायी थी
और मंत्र फ़ूँकते हुये कुछ तांत्रिक
तब रटे जा रहे थे हिंदी.. हिंदी.. हिंदी..
अग्नि की लपटें तीन सौ ग़ज ऊपर उठीं थी
बस्तियाँ जब जल रही थी.. लोग झुलस रहे थे
तांत्रिक पसीने से तर-ब-तर होकर
जब एकसुरी अश्रुपूर्णित मंत्र पढ़े जा रहे थे
हिंदी भीषण जगाये जा रहे थे दिलों में सबके
के यकायक आकाशवाणी हुयी और
सब थर्रा गये-
ऐ! मूर्ख हिंदी जलाकर हिंदी बचा रहे हो?
अब समेटते रहो पीढ़ियों दर पीढ़ियाँ
हिंदी बहुत वक़्त लेगी फ़िर से लौट के आने में
मनाओ हिंदी दिवस और कोसों ख़ुदको
हिंदी तैरती आकाश में कहीं दूर जा रही थी
और सब हिंदी अर्थी ठेकेदार हाथ जोड़े
Oh! My god कह रहे थे।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry #HindiDiwas2016

ख़ुद्दारी उतारकर फ़ेंक ही दी हमने आख़िर में

ख़ुद्दारी उतारकर फ़ेंक ही दी हमने आख़िर में
सवाल जब उठा हुआ था सबके ही ख़ातिर में।

जब तलक धुंध कमरे में थी वो लिपटी रही थी
कमाल हुआ ख़्वाबें जली आके यूं धूप सिर में।

उस ग़ज़ल का मक़ता ही उन्हें पसन्द नहीं था
ख़ाक समझेंगे वो शे'र हुस्ने-मिसरा ज़ाहिर में।

मैं मुतमैयन भी नहीं ना ही तग़ाफुल करता हूँ
सब इल्म भूल आया हूँ दास्तान-ए-साहिर में।

दीवारें सटी हुई हैं पर दिलों में फ़ासले हैं वर्मा
अपने भी आज बहुत खड़े हुये हैं मुहाज़िर में।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

अँधेरे में जो तुम ही जलकर सामने आ जाती

अँधेरे में जो तुम ही जलकर सामने आ जाती
सच्चाई सब वहीं निकलकर सामने आ जाती।

जब भी कभी थोड़ा तल्ख़ होना चाहता था मैं
इक सूरत हसीन पिघलकर सामने आ जाती।

ये दरम्यान नजाने क्या बचा था दरोदीवार के
परछाइयाँ ख़ुदसे लिपटकर सामने आ जाती।

तकलीफ़ तुम्हारे वापस लौटके आने की नहीं
बस कभी ये मौजूँ बदलकर सामने आ जाती।

बहुत तन्हा महसूस किया था मैंने ख़ुदको तब
जब शामें मुझमें ही ढ़लकर सामने आ जाती।

हुस्न दरिया था उसका पर थी सराब में ज़िन्दा
प्यासी थी तो वहीं मचलकर सामने आ जाती।

दमपुख़्त फ़िरसे ख़ुदको किये है हम भी वर्मा
वो सलीका नहीं के घुलकर सामने आ जाती।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

यूं ठुकराया जाना किसे पसंद होता है

यूं ठुकराया जाना किसे पसंद होता है
ख़तों के सिलसिले के दरम्यान
चयनकर्ताओं से अपनी पहचान
बाज़ारों के बीच पुरानी सी दुकान
बची हुई झूठी सी अपनी शान
मंज़ूर नहीं होता है किसी को
यूं बेवज़ह का ठुकराया जाना
लेकिन फ़िर हवा उठती है इक
कोई लहर भी आता है अज़ीबोग़रीब
और फिर वक़्त बदलता है
इंसान भी बदलते हैं कई शक्ल लेकर
और रिवाज़ चल पड़ता है फ़िर से
बदले की, द्वेष की, स्वतंत्रता की
स्वाधीनता की और आंदोलनों की
फ़िर लाज़िम होता है ठुकराया जाना
प्रेमी मुहब्बत ठुकरा देता है
निज़ाम मुल्क को
अफ़सानानिगार साहित्य को
क़िताब-ए-हर्फ़ मानी को
बादल बारिश ठुकरा देते हैं
पेड़ पत्तों को
दोस्त सोहबत को
और धर्म कर्तव्य को
और फ़िर जारी रहता हैं यहाँ
अनादिकाल तक ठुकराया जाना
पर सोचिये ख़ुदको उदाहरण लेकर
यूं ठुकराया जाना किसे पसंद होता है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

आइये इक और क़त्ल करते है

आइये इक और क़त्ल करते है
थोड़ा बुरा और शक्ल करते है।

उसकी शाम रोशन कैसे रहेगी
चलो कुछ और दख़्ल करते है।

देखकर उस शाख की दरख़्त
कुछेक हम भी नक्ल करते है।

हमारा वजूद भी मिट्टी में मिला
हमीं बयां हाले-दिल करते है।

के दावेदार भी बहुत है यूं वर्मा
जो मुझे ही बद्शक्ल करते है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तेरे ही जिस्म को ओढ़ता हूँ मैं

तेरे ही जिस्म को ओढ़ता हूँ मैं
जब-जब सर्दियाँ मुझमें बनती है
तुझमें ही तो डूब जाता हूँ मैं
जब-जब गर्मियाँ मुझमें उतरती है
मैं हूँ इक धूप.. तू हवा सी है
तू चलती है तो मैं चलता हूँ
तेरे ही होने से है ये सब मुझमें
ख़यालों की काग़ज पे तू ही उभरती है
तेरे ही जिस्म को ओढ़ता हूँ मैं
जब-जब सर्दियाँ मुझमें बनती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ये इश्क़ वादे भी हज़ार करता है

ये इश्क़ वादे भी हज़ार करता है
कमबख़्त! ऐसे ये प्यार करता है।

कइयों मानी में जब्त हुआ था जो
वो शे'र मुझे असरदार करता है।

तन्हाई में कई बार ख़याल आया
मेरा ज़िस्म भी व्यापार करता है।

जब डूबने लगी तमाम ख़्वाहिशे
लगा दिल कुछ उधार करता है।

करवटें लेती रहीं थी सिसकियाँ
ख़बर तो खड़ा दीवार करता है।

वो मुझमें मुद्दा उठाता है हरबार
वही ख़ुदको अखबार करता है।

जो उलझते रहे थे हम ख़ुदसे ही
इसपे ही वो जाँनिसार करता है।

था कोई ये हक़ीकत का क़िस्सा
इल्म ख़ूब हो तकरार करता है।

जब भी गुजरता हूँ मैं तिरगी से
वो आके मुझे गुलज़ार करता है।

उल्फ़त की गर्मी ऐसी लगी वर्मा
देखा इश्क़ भी बीमार करता है।

नितेश वर्मा

#Niteshvermapoetry

Monday, 5 September 2016

वासनाओं से लिप्त होकर वो ढूंढती है

वासनाओं से लिप्त होकर वो ढूंढती है
पर-ज़िस्म के अंदर इक ठिकाना
जब हवस उसपर हावी हो जाता है
और अक्ल का संयमन टूट जाता है
इक विद्रोह खौलती है उसमें
लाज़ो-शर्म की लिपटी हुई नक़ाब
वो उतारकर कहीं दूर फ़ेंक देती है
बने-बनाये बंधनों से मुक्त होकर
वो उतर जाती है सुकूने-तलाश में
और भरती हैं अपनी इच्छाओं को
के फिर वो उस ज़ेहनियत से निकल
कुछ ऐसा ईज़ाद करे
कि उसकी अतृप्त वासनाओं का
कभी कोई मज़ाक ना बना बैठे कहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ

ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ
अदना सी इक शायर अदना सी हस्ती हूँ
मेरे बोल सिर्फ़ मुझमें ही नहीं सिमटते हैं
कई दर्द, कई जवाब, ख़ाबों की मस्ती हूँ

सौ उबलते ख़यालों को जलाया हैं मैंने
दर्दों को भी तो हँसना सिखलाया हैं मैंने
मेरे ज़िस्म पर हर्फ़ मचलती रहती है
मेरे अंदर भी हूँ मैं कहाँ झूठलाया हैं मैंने
अज़ीब दास्तानगो हूँ ख़ुदसे मुकरती हूँ
ख़ुदमें कई क़िस्सों को बहलाया हैं मैंने
मेरी ज़र्द चेहरे पर कई ख़्वाहिशें उमड़ती हैं
कभी शर्मीली सी तो कभी मैं जबरदस्ती हूँ
ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ
अदना सी इक शायर अदना सी हस्ती हूँ

बेख़ौफ मंजिलों तलक भटकती हूँ कभी
समुंदर ज़ुबाँ पे रखकर गटकती हूँ कभी
आसमां पे भी चलने का हुनर है मुझमें
पर इनसे दूर ख़ुदको झटकती हूँ कभी
मैं आलस में उलझी इक कविता सी हूँ
ख़्वाहिशों भरी डाली से लटकती हूँ कभी
धड़कनों की हर साज़िश से वाकिफ़ हूँ
कभी मुनासिब तो कभी मौकापरस्ती हूँ
ना कोई जहाज.. ना ही मैं कोई कश्ती हूँ
अदना सी इक शायर अदना सी हस्ती हूँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

इतना भी सफ़र नहीं था मुश्किल मेरा

इतना भी सफ़र नहीं था मुश्किल मेरा
मुझमें ही लापता था पता शामिल मेरा।

मैं गुनाहों से ख़ुदको दूर रखने लगा हूँ
हुआ है इस तरह नाम ये कामिल मेरा।

हुनर तो आज कमरे में दम तोड़ती है
जुगाड़ से है रोशन शहर काबिल मेरा।

कुछेक बात ज़माने में असरदार भी है
इक शख़्स फ़िर हुआ है जाहिल मेरा।

बहुत दिनों से निगाहें सजाके बैठा था
अब आरज़ू है तुझसे होके मिल मेरा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

आसानी से जब भी चराग़ों ने जलना चाहा

आसानी से जब भी चराग़ों ने जलना चाहा
हवाओं ने उसे साज़िशों में लिपटना चाहा।

कई घर जले यहाँ, कइयों तो राख़ हो गये
क़ीमत देके लोगों ने फिर खरीदना चाहा।

नाजाने क्या बसता रहा था उसके सीने में
रंगों से उसने, तस्वीरों को बदलना चाहा।

जब बहुत दूर निकल आया था वो ख़ुदसे
फिर पलट के वो आख़िर संभलना चाहा।

मुतमईन तो वो अपनी साँसों से भी ना है
बेकरार है बस मौसमों में पिघलना चाहा।

एक सियासत उसे ख़ुदमें खींचती है वर्मा
इक शिकायत में चाँद ने यूं ढ़लना चाहा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

उन लिबासों को उतारकर फ़ेंक दीजिए

उन लिबासों को उतारकर फ़ेंक दीजिए
दाग़ ग़र ज़िस्म पर हैं.. तो कई अच्छा है।

अब झूठ पर ज़ुबान मत दुहराइये इतना
फ़र्क़ समझ में है के क्या-क्या सच्चा है।

मनहूसियत घर क़ैद कर लेती हैं हमारी
ये इल्म नहीं है उसको वो इक बच्चा है।

हम भी गुजरे थे ख़ामुशी ओढ़कर वर्मा
उसने पत्थर फ़ेंका औ' कहा ये रक्षा है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

बहुत मुश्किल होता है कुछ भी मान लेना

बहुत मुश्किल होता है कुछ भी मान लेना
इस तार्किक उम्र में भी आकर चुप रहना
किसी वादो-विवाद से मुकरना
सच में आसान नहीं होता है कुछ मानना
जैसे अक्सर चुपचाप मान लिया करते थें
पुरानी गणित की क़िताबों में
उलझे कई सवालों के ज़वाबों को एक्स
क्या ये वही एक्स है जो गुजर गया है
या मुझसे छूट गया
या मैंने ही जिसको गुजरने दिया
क्या अब मैं ज्यादा परिपक्व हो गया हूँ
जो ख़याल में हूँ इस उबाऊ से एक्स के
वो एक्स, जो मुझे कभी समझ नहीं पाया
दूर होकर भी कई रात लौटकर रुलाया
जिसने मेरे अंदर के इंसान को मार दिया
या मेरे गले में जो फ़ंदा छोड़कर है गया
मेरी शामे जो उदास करके आगे बढ़ गया
क्या मैं उस एक्स पीछे हूँ.. एक वक़्त से
क्या मैं ख़ुदको तलाश रहा हूँ उस एक्स में
या मैं ये मान बैठा हूँ
उस अतीत को आज का व्यंग्य इक
पर फ़िर सोचता हूँ के क्या आसान है ये
बहुत मुश्किल होता है कुछ भी मान लेना

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तिरी उलझन तुझे ही काटती है

तिरी उलझन तुझे ही काटती है
ग़मे-उलफ़त बढ़े तो डांटती है।

लबों से छूटकर प्याला गिरा था
कहानी अब अधूरी झांकती है।

अभी हुए थे गुमाँ के होश आईं
अचानक नींद भी ये मारती है।

नहीं वो बोलना था जो सुना था
मिरा दावा शर्त अब हारती है।

ज़िस्म क़ैदी हुई आख़िर जहाँ ये
उसी के साथ.. साये भागती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

किसी अर्थहीन जीवन की कड़ी

किसी अर्थहीन जीवन की कड़ी
पर भटकता एक राही
पुकारता रहता है अकारण
विरह-वेदनाओं के मध्य
प्रसन्नताओं के नव अंकुरों को
विचलित विचारधाराओं के संग
जिसका चित्त मलिन रहता है
वो स्वीकार कर हर पराजय
पाखंडी स्वयं को झोंक देता है
भक्ति के भयावह हवनकुंड में
कई लालसाओं के अर्थ को लेकर।

नितेश वर्मा

उतने ही शिद्दत से दबाया था उसने गला मेरा

उतने ही शिद्दत से दबाया था उसने गला मेरा
जाँ हलक में अटक जाएं और साँस भी ना टूटे।

मैं बेतहाशा भागता रहता था मंजिल मिलने से
मरा तो दुआ करा के अब एहसास भी ना टूटे।

बिलकुल ख़्वाब से दूर थे, रोशनी फैलाने वाले
बारिशे-आरज़ू औ' सोचते के प्यास भी ना टूटे।

मिट्टी में दफ़्न हैं सब इतिहास में चमकने वाले
पढ़ रहें हैं सब के बस अधूरी आस भी ना टूटे।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

नज़्म : उसके ख़याल

जब उसके ख़याल सिर्फ़ उसके नहीं होते है
वो पहनी हुई होती है कई मोतियों की माला
कई रेशमी दुपट्टे संग उसके उड़ती हैं
हवाओं में फ़र्र-फ़र्र.. फ़र्र-फ़र्र.. करते हुए
कड़कड़ाती धूप में छिछलते हुए पानी पर
जब वो यकायक महसूस करती है चुभन
कंकड़ों और तलवों के मध्य नज़ाकत की
एक ठंडी गुदगुदी शीतलता की भरी हुई
छिपी मुस्कुराहट फैल जाती है चेहरे पर
फ़िर निकालकर अपनी डायरी बैठ जाती है
ऐड़ियों तक पांव तृप्त ठंडे पानी में डुबोकर
और बेसुध लिखती जाती है कोई कविता
किसी मनगढ़ंत कहानी को दरम्यान रखकर
वो कहानी जो वो देखती है सामाजिकता में
अपने घर के दहलीज़ को लांघने से पहले
जब उसकी नज़र झुक जाती है प्रतिउत्तर में
वो पटककर पांव जब चीख़ती है झुंझलाकर
जब उसके उड़ने पर आँख दिखाई जाती है
उसकी उठती हुई आवाज़ दबाई जाती है
उसके ही स्त्रीत्व निर्बलता का वास्ता देकर
वो फ़िर लिखना छोड़कर देखती है बादलों में
अपनी उंगलियों को उलझाती है जुल्फों में
और फ़िर एक ख़्वाहिश भरकर उठती है
और..
निकल जाती है फ़िर ख़ुदके तलाश में कहीं
मतवाली होकर,पंख खोलकर,आसमां ओढ़कर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ये किसने आस भरी नज़र फ़ेरी है आसमां पर

ये किसने आस भरी नज़र फ़ेरी है आसमां पर
सारे तारे बादलों से निकलकर झांकने लगे हैं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मिलता नहीं है जिसको ठिकाना ख़ुदमें कभी

मिलता नहीं है जिसको ठिकाना ख़ुदमें कभी
वो चाहता है ढूंढना इक बहाना ख़ुदमें कभी।

लोग जब मर रहे थे मैं प्यार में डूबा था कहीं
अब चाहता हूँ के कहूं फ़साना ख़ुदमें कभी।

इस क़दर झांकती है तस्वीरें-निगाह मुझ पर
जैसे तड़प उठता है ये ज़माना ख़ुदमें कभी।

है आरज़ू भी अब ख़्वाब से बहुत दूर मुझमें
के कोई चाहता है मुझे मिटाना ख़ुदमें कभी।

रोशनी में बार-बार तीरगी नज़र आती रहीं
पता चला वक़्त क्या है गँवाना ख़ुदमें कभी।

शक़ के दायरे में, मैं ही आता रहा था वर्मा
लगाएँ ज़ुर्म मुझपे मेरा शर्माना ख़ुदमें कभी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

तो जन्म लेने दीजिये उस कृष्ण को

सावन के ठीक बाद की हरियाली
भादों की बेइंतहा बारिश
किसी घाट किनारे
बछड़ों का जमघट
फलो से लदी हुई डाली
राधा, रूकमणि, मीरा का मिलना
एक कृष्ण प्रेम का छिपा हुआ है
हम सबके अंदर
इक राधा
इक रूकमणि
इक मीरा के इंतज़ार में
तो जन्म लेने दीजिये उस कृष्ण को
आने दीजिये
कान्हा को अपने घर। �

नितेश वर्मा

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। कान्हा आपके घर पधारें।
#Niteshvermapoetry #Happyjanmasthami

हमलोग इधर से पत्थर फ़ेंक रहे थे.. और वो लोग उधर से लाठियाँ बरसा रहे थे।

बारहवीं के दिनों की बात है.. जब स्कूल में लंठई करते हुए आये दिन सस्पेंड होना पड़ता था। एक बार इसी तरह एक लौंडे की जबरदस्त कुटाई कर दी और जब मास्साब डंडा लेकर पीछे दौड़ें.. तो स्कूल के पीछेवाली गली से रफूचक्कर हो गया। गले में लटका हुआ बस्ता.. ज़ालिम हुआ जा रहा था और घर लौट के अभी जा भी नहीं सकता था। बस्ते में रखा टिफिन खोला और बीच रोड पर चलते-चलते मुँह में ठूंसने लगा। हलक जब पराठों की गर्मी से उग़ता गया तो फिर स्कूल की ओर भागा। पानी अभी पी ही रहा था कि देखा- कुछ लौंडे मास्साब को लेकर चापाकल की तरफ़ दौड़ें हुये चले आ रहे हैं। माज़रा भांपकर प्यास को अधमरा छोड़ते हुए भागा.. इसी बीच कई बार औंधे मुँह गिरा लेकिन तबतक नहीं रूका जबतक ये यक़ीन नहीं हो गया कि अब ख़तरा टल गया है।
कुछ देर दौड़ने के बाद.. पीछे मुड़कर देखा तो दूर-दूर तक ना मास्टर की ख़बर थी और ना ही उनके चमचों की। आगे मुड़कर स्टाइल से चलना चाहा तो यकायक घुटने में दर्द हुआ। नज़र फिर जब नीचे झुकाकर देखा तो पैर कई जगहों से छिला पड़ा था.. ख़ून की छोटी-छोटी बूंदें उनपर पनप रही थी। हाथ नीचे करके उन्हें छूना चाहा तो हाथ भी जगह-जगह छिला पड़ा था। क्लास का चुराया हुआ चॅाक बस्ते से निकाला और छिले हुए जगहों पर मल दिया। जब यक़ीन हुआ कि चॅाक का कैल्सियम अब घावों को भर चुका है तो फ़िर बस्ता उठाकर आगे बढ़ गया।
आगे बढकर देखा.. कुछ लोग विद्रोह भरे नारे लगाएँ जा रहे हैं। धीरे-धीरे उनके पीछे लोगों की लाइन बढ़ती जा रही है। मैं भी हुज़ूम के पीछे हो गया। बीच-बीच में टॅाफ़ियाँ बांटीं जाने लगी। चकितमंद मन मुफ़्त की टॅाफ़ियाँ लेकर आगे कुछ और बेहतर पाने को बढ़ा। इसी बीच किसी ने कोई एक झंडा पकड़ा दिया। मैं भीड़ को चीरता.. झंडा हवा में लहराते आगे बढ़ा। आगे पहुँचकर देखा पुलिस कर्मियों की भीड़ उस जुलूस को रोके हुए हैं। कुछ जुलूसकर्मी पुलिस वालों से उल-जुलूल की बातें किये जा रहे थे और पुलिसवाले बात-बात पर उनसे चाय और बीड़ी मंगवा लेते।
धीरेधीरे जुलूस में स्वार्थ से घुसते लोग जुलूस को अनियंत्रित करने लगे। पुलिसवाले हैरान-परेशान होकर चाय पीये जा रहे थे। गर्म माहौल में इतनी शांति देखकर किसी ने एक पत्थर फ़ेंका.. फिर उसके पीछे यकायक सैकड़ों पत्थर आने लगे। पुलिस वाले इससे तंग होकर लाठियाँ बरसाने लगें। उधर से जितनी लाठियाँ बरसती उतनी इधर से हम मुँहतोड़ ज़वाब भेज देते। भीड़ पर कोई केस नहीं होता है सुनकर दो-चार पत्थर मास्टर और उन चुंगलख़ोरों लौंडे के नाम मैंने भी फ़ेंक दिया। बस ग़लती यहीं हो गई.. बहती गंगा में हाथ धोते हुए मुहल्ले के एक चचा ने देख लिया। जब शाम को घर लौटा तो माँ ने हर लंठई का भुगतान सूद-समेत करवा लिया।
रात में पापा ने घर आकर कहा कल उसे स्कूल मत भेजना.. आज पुलिस और एक जुलूस के बीच झपड़ होने के कारण शर्माजी के बेटे को बहुत चोट आयी है। पूरा परिवार उनका हास्पिटल में परेशान है अभी मिलकर ही आ रहा हूँ। जाने क्या हो गया है लोगों को.. किसी का भी कोई ख़याल नहीं। पापा की बातों को सुनकर मैं रात-भर परेशान रहा कि आख़िर किसी और को कैसे चोट लग गयी। जब-
हमलोग इधर से पत्थर फ़ेंक रहे थे.. और वो लोग उधर से लाठियाँ बरसा रहे थे।
झूठ है.. सब झूठ है। मेरी तरह वो भी स्कूल से निकाला गया होगा वर्ना ऐसे कैसे कुछ हो सकता है। हैं नहीं तो क्या? बड़ा आया हुम्म्म्म। और फ़िर बड़े इत्मीनान से अगली दिन के छुट्टी का प्लान करने बैठ गया।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

यूं ही एक ख़याल सा..

उस समय तक मैं अच्छी शायरी करने लगा था.. और वो कुछ और जवाँ हो चली थी। समझ के साथ.. आये दिन हममें बहसबाज़ियाँ होने लगी थी। वो ना तो ख़ुद से ही मुतमईन थी और ना ही उसे अब इस मुहब्बत पर यकीन रहा था। शायद! कहीं दूर से कोई एक अंजान सा रिश्ता आकर हम दोनों के बीच बैठ गया था। वो मुझसे ख़फा-ख़फा सी रहने लगी थी।
इसका एक और कारण भी माना जा सकता है, कि मैं भी उससे कुछ दूरियां बनाने लगा था.. हालांकि जो पूरी तरह से सही नहीं हैं। जाने क्या रहा था हम दोनों के बीच जो हर वक़्त हमें एक शर्मिंदगी से बांधें परेशान रखता था। राब्ता अब बिलकुल ख़त्म होने ही वाला था कि अचानक.. फिर से मरी हुई मुहब्बत ने एक चाल चली, अचानक से उसे मुझपर एतबार हो गया और मुझे उसकी मुहब्बत पर एक तरफ़ा यकीन। मैं ख़ुद को उससे पल भर भी जुदा नहीं रखना चाहता था। एक डर उससे जुदा होने भर का.. मुझे ना तो सोने देती और ना ही जागने देती। मैं मरना नहीं चाहता था और ना ही वो मेरे बिना जीना चाहती थी। किसी रब की कोई मेहरबानी नहीं हुई और ना ही फ़रिश्तों की कोई साज़िश।
मुहब्बत में फ़िर हम दोनों मुकम्मल हो गए। बस बदलते वक़्त ने साथ नहीं दिया। इसलिए.. वो अब किसी और घर की छांव है और मैं किसी और शहर का आफ़ताब जो हर रोज़ उसके आँगन में भी चला जाता है.. उसके लाख़ रोने-धोने और मना करने के वावज़ूद। �

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

दोपहर की छिपती-छिपाती हुई

दोपहर की छिपती-छिपाती हुई
सूरज की मचलती किरणें
ड़ोलते हुए कुछ काग़ज से पत्ते
बादलों में से गुजरता हेलिकॉप्टर
आसमानों से लिपटते परिंदे
गली में चीख़ता हुआ फ़ेरीवाला
मेरे दीवार पर तामीर होती हुई
तुम्हारे साये की खिड़की
फिर हल्की बारिशों के फ़ुहारे
फ़िर तुम्हारा एकदम से
अचानक खिड़की पर आ जाना
ख़लता है आज भी
जो उस वक़्त
दरम्यान हमारे बातें नहीं थी
और फिर तुम
दरीचे से ख़ुदको छिपाकर जो
छोड़ देती थी हल्का खुला उसे
बौछारें मेरी मुहब्बतों के
फिर तमाम रात बरसती रहती
तुम्हारे खुशबू में लिपटकर
मेरे आंगन के कोने-कोने तक।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

क़िस्सा मुख़्तसर : अमीर ख़ुसरो

ऐसा माना जाता है कि उर्दू को हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर सबसे पहले अमीर ख़ुसरो लेकर आए थे। अमीर ख़ुसरो उर्दू अदब के एक बहुत ही जाने-माने अदबी रहें है, इन्हें इनकी हाज़िर-ज़वाबी के लिए तूतिये-हिंद का ख़िताब दिया गया है। इनकी हाज़िर-ज़वाबी को लेकर कई क़िस्से प्रचलित है, एक क़िस्सा ये भी काफ़ी मशहूर है-
एक बार गर्मियों के मौसम में अमीर ख़ुसरो इधर-उधर घूमकर चक्कर काट रहे थे। थोड़ी ही देर में उनका गला सूखने लगा और वो अपनी प्यास मिटाने के लिए एक कुएँ के पास पहुँचे। वहाँ पहले से ही चार औरतें अपने बर्तनों में पानी भर रही थी, अमीर ख़ुसरो ने उनसे पानी पिलाने को कहा। उन औरतों में से एक ने अमीर ख़ुसरो को पहचान लिया और सबको उनके मशहूरियत के बारे में बताया। वे औरतें तो पहले उन्हें सामने देखकर हैरान हो गई फिर अमीर ख़ुसरो से कहा कि वे उन्हें तभी पानी पिलाऐंगी जब वो उन चारों के दिए शब्दों को मिलाकर एक कवितात्मक रचना बनाकर उन्हें सुनाऐंगे। एक प्यासे इंसान के लिए यह बहुत मुश्किल काम हो सकता है लेकिन वो अमीर ख़ुसरो थे.. उन्होंने कहा कि ठीक है! मुझे मंज़ूर है.. आप लोग अपने-अपने शब्दों को बताइये।
पहली औरत ने कहा- चरखा
दूसरी ने- कुत्ता
तीसरी ने बोला- खीर
और चौथी ने कहा- ढ़ोल
ये शब्द काफ़ी हास्यास्पद थे, और अमीर ख़ुसरो काफ़ी खुशमिज़ाज इंसान थे उन्होंने उनके दिये हुए शब्दों से एक काफ़ी दिलचस्प दोहा बनाकर पेश किया -
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाए।
आया कुत्ता खा गया, तु बइठि ढ़ोल बजाए।।
अमीर ख़ुसरो के इस खूबसूरत से दोहें को सुनकर वे सब औरतें खिलखिलाकर हँस पड़ी और उनका गुणगान करती उन्हें पानी पिलाने लगी।
नितेश वर्मा

इस बंज़ारे-दायरे में नजाने कौन आता रहा

इस बंज़ारे-दायरे में नजाने कौन आता रहा
कभी तन्हा, तो कभी बज़्म में उग़ताता रहा।

उसके ज़िस्म को कुरेदते रहें सारी रात हम
सुब्ह फिर खाली हाथ परिंदा पछताता रहा।

ज़ेहनियत बिगड़ चुकी थी दिमाग़ पागल था
इल्मे-याफ़्ता था, एक हद तक शर्माता रहा।

सोचा था सबकुछ वक़्त के मुताबिक़ होगा
फिर हर घड़ी, नजाने क्यूं जी घबराता रहा।

इक घाव ज़िस्म से उतरकर, दिल में फैला
कभी रोया तो कभी थाम के सहलाता रहा।

सुकून क़ैद है कहीं मेरे ही सीने में छिपके
इक डर में मैं ही था, जिसे मैं फैलाता रहा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

जब कोई ख़याल नहीं होता है ख़ुदमें

जब कोई ख़याल नहीं होता है ख़ुदमें
दर्द-ए-ज़ुबाँ समझाने को
जब ग़म रिसती रहती हैं आँखों से
झुंझलाहट सीने में क़ैद हो जाती है
इंसान जब मुकरता है हर ख़ाब से
ज़ुबान जब लड़खड़ाती है ख़ुदसे
सर अक्सर ही भारी होता है ख़ुदपे
जब अंदर ही अंदर कई
दिन-ओ-रात से कोई मरता है ख़ुदमें
सिसकियाँ लेती हैं ये बेतरतीब साँसें
हिचकियाँ उतर आती हैं हलक पर
चेहरे पर कई छाले एक साथ उगते हैं
इस हालत पर आकर बेइंतहाई से
फ़िर ख़ुदमें ही ख़ुदको मैं तलाशता हूँ
जब कोई ख़याल नहीं होता है ख़ुदमें।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

है घुप्प अँधेरा

है घुप्प अँधेरा
और तुम्हारे आने की आहट भी है
तारों में हल्की रोशनी हैं
हवाओं में तुम्हारी खनखनाहट भी है
बात पुरानी सी है
अरसों की बीती-बीती
ज़ुबाँ हौले-हौले से कुछ गुनगुनाएँ
और आँखों में इक धुंधलाहट भी है
हर शे'र के बाद
आवाज़ें गूंजती हैं चारों दिशाओं में
लफ़्ज़ों में जैसे इक कड़वाहट भी है
उग़ता कर लिबास फ़िर उतारा है
ज़िस्म-ए-दिल पे कई झुंझलाहट भी है
है घुप्प अँधेरा
और तुम्हारे आने की आहट भी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मुझमें इतना गिला तो रहने दो फ़रमाबरदारों

मुझमें इतना गिला तो रहने दो फ़रमाबरदारों
वो छोड़ गई मुझे ये शिकायत बहुत ज़ुरुरी है।

मेरे चेहरे पर वीरानीयाँ उग आईं हैं बा-दस्तूर
तेरे चेहरे पर भी कुछ कम नहीं जी हुज़ूरी है।

ना तलाश कर तू ख़ुदको कहीं भटक जायेगा
ये पहचान ठिकाना नहीं बस इक सुरूरी है।

नजाने मैं क्या ढूंढता था ज़माने में सदियों से
मैं लापता हूँ ख़ुदसे मेरी यही एक मजबूरी है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है

बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है
तुमको जो तुम्हारे मंजिल तक ले चले
तुम्हारे सफ़र की वो पांव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है

तुम्हारे हर इम्तिहान के दिनों में
जो तुम पर अक्सर चिल्लाती है
तुम्हारे सहेजे खूबसूरत से कंचो को
जो अक्सर बाहर फ़ेंक आती है
पापा से जो तुमको डाँट दिलवाती है
तुम्हारे सिक्के जो अक्सर चुराती है
पर हर सुबह-शाम दुआओं में तुम्हारी
सलामती की ख़ैर भी तो मनाती है
लहरों के बीच मझधारों में स्थिर सी वो
किसी अल्लहड़ पतवार की नाव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है

जिसकी आँखों में समुंदर भी डूबता है
इश्क़ भी जिसको हर मर्तबा चूमता है
जिसके संग होने पर तुम मुस्कुराते हो
जिसकी बातों में जग भी हार जाते हो
ख़ुदमें जो सुलझी पहेली सी दिखती है
तुमको जो सच्ची सहेली सी लगती है
वो तुम्हारे हिस्से की गर्म चाय होती है
बेहद दिलनुमाँ सी एक राय होती है
किसी बेतहाशा, बोझिल, बेचैन से
शहरों के बीच जैसे कोई गाँव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है

झूठ से सख़्त नफ़रत है जिसको
तुम्हारे ख़ातिर सौ-सौ बोलती है
जिसे चिढ़न है किसी से भी मिलने पर
तुमसे बेसब्र कई दफ़ा लिपटती है
कभी किसी पतंग की तरह मचलती
जिसकी ड़ोर वो तुम्हारे हाथों में देती है
जिससे शरारत तुम्हारी कम नहीं होती
वो इक आवाज़ जो तुम्हारी भी होती है
धूप उसकी ही पायल छूकर ठंडक भरे
सर्दियों में जैसे गर्म अलाव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है

जो तुमसे कभी कुछ माँगती नहीं है
फिर बेमर्जी दिल में जो आ जाये उसके
अपना हक़ जताकर तुमसे छिन लेती है
कभी ख़्यालों में आकर गुदगुदाती है
कभी नमीं होकर आँखों से उतर जाती है
किसी रोज़ कलाई पर इक धागा बांधती है
फिर बिन बोलें जो सबकुछ कह जाती है
जिसको तुम्हारा हो जाना अज़ीज होता है
जो ख़ुदसे हार कर देदे अपनी जीत तुमको
ऐसी अद्भुत सी वो इक दांव होती है
बहन एक खुशनुमाँ सी छाँव होती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
#HappyRakshaBandhan

A tribute to all loving sisters 

करवटों में जब ढ़ल रहे थे दिन और रात

करवटों में जब ढ़ल रहे थे दिन और रात
सिसकियाँ जब क़मरे में खा रही थी मात
तुम लौटे थे.. तब जाकर मेरी ज़िन्दगी में
जब कहीं दफ़्न हो गये थे.. सारे ख़्यालात

नब्ज़ जब छोड़ चुके थे धड़कनों से साथ
किसी और को जो मान बैठे थे हम नाथ
तुम लौटे थे.. तब रास्ते सजाके ख़्वाबों में
ज़िन्दगी फिर, फ़ीकी लगी देखके यथार्थ

दिन जब धुंधली चादर लपेटकर सोई थी
रात बारिशों में जाके जब कहीं खोई थी
तुम लौटे थे.. तब रिमझिम फुहार बनके
फिर तुम्हें उनमें देखकर कितना रोई थी

वक़्त बदला तो मैं भी कुछ बदलने लगी
आहिस्ता ही सही पर फिर संभलने लगी
तुम लौटे थे.. तब संवेदनाएँ बनकर कई
तुमको सलामत देख.. मैं भी चलने लगी।

नितेश वर्मा और तुम लौटे थे.. तब।
#Niteshvermapoetry